वीरेन्द्र प्रमोद/निस
लुधियाना, 13 जून
पंजाब में अगले वर्ष के शुरू में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन के बाद अब वाम पंथियों के भी इस गठजोड़ के साथ आने की संभावना है। सूत्रों का दावा है कि आगामी कुछ दिनों में वामपंथी पार्टियां भी महागठजोड़ में शामिल हो सकती है। सूत्रों के अनुसार अकाली नेता सुखबीर सिंह बादल और दोनों वामपंथी दलों (सीपीआई और सीपीएम) के नेताओं के साथ इस संबंध में पहले दौर की बातचीत भी हो चुकी है। अकाली सूत्रों का कहना है कि पंजाब के मालवा क्षेत्र में प्रत्येक विधानसभा सीट पर वामपंथी दलों की दो हजार तक कट्टर वोटर हैं, जो अकाली दल के घाटे को पूरा करने में सहयोगी सिद्ध हो सकता है। इस बीच, आंतरिक कलह में बुरी तरह से फंसी हुई सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी के लिए अकाली-बसपा गठबंधन बड़ा खतरा साबित हो सकता है। नया चुनावी गठबंधन लम्बे समय से राज्य में हाशिये पर चली आ रही बसपा के लिए भी संजीवनी बन सकता है। यदि कांग्रेस पार्टी के नेताओं के बीच चल रही आपसी लड़ाई न निपटी और सभी अपने मतभेद भुलाकर एकजुट न हुए तो सत्ता में वापसी नामुमकिन हो होगी।
अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने नये गठबंधन को पंजाब की राजनीति में नया सवेरा और बसपा सुप्रीमो मायावती ने दोनों पार्टियों में करीब 25 साल बाद हुए इस गठबंधन को राजनीतिक और सामाजिक पहल वाला ऐतिहासिक कदम बताया है। इस बीच, अकाली दल के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल ने तुरंत बसपा सुप्रीमो बहन मायावती से फोन पर बात कर एक योग्य अनुभवी राजनेता की कला का प्रदर्शन किया। उन्होंने मायावती को जल्द ही पंजाब बुलाने की बात कही। मायावती ने ट्विटर पर 3 ट्वीट के जरिए इस गठबंधन पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, ‘पंजाब में शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी द्वारा घोषित गठबंधन यह एक नया राजनीतिक व सामाजिक पहल है, जो निश्चय ही यहां राज्य में जनता के बहु-प्रतीक्षित विकास, प्रगति व खुशहाली के नए युग की शुरुआत करेगा। इस ऐतिहासिक कदम के लिए लोगों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।’ अकाली दल ने भाजपा से तीन कृषि कानूनों के मुद्दे पर अलग होने के बाद अपने संगठनात्मक ढांचे में व्यापक सुधार करके अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया है। अब वह गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी और गोलीकांड के मुद्दों पर भी राज्य में सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी के विरुद्ध बेबाक हो बोलने लगे हैं। राजनैतिक खेमो में इस बात की भी चर्चा जोरों पर है कि भाजपा के प्रभाव वाली कुछ शहरी सीटों पर भी नया गठबंधन ठोस सिद्ध हो सकता है।