पंजाब की जेलें आज एक गंभीर सच्चाई की गवाही दे रही हैं-जहां अपराध साबित होने से पहले ही हजारों लोग वर्षों से कैद हैं। प्रदेश की जेलों में कुल 36,846 बंदियों में से 30,339 विचाराधीन हैं।
यानी 82% से अधिक कैदी ऐसे हैं, जिन पर आरोप तो हैं, लेकिन दोष सिद्ध नहीं हुआ। यह न सिर्फ जेल व्यवस्था पर सवाल है, बल्कि न्याय प्रणाली की गति और सरकारी रवैये पर भी कठोर टिप्पणी है।
लुधियाना सेंट्रल जेल में 3,489, कपूरथला में 2,863 और अमृतसर में 2,233 विचाराधीन कैदी हैं।
महिलाओं की जेलों में भी स्थिति कम गंभीर नहीं। लुधियाना महिला जेल में 226 महिलाएं बिना सज़ा के बंद हैं। ट्रांसजेंडर समुदाय के भी दो सदस्य विचाराधीन कैदियों की सूची में हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि नई जेलें बनाने से नहीं, बल्कि पुलिस और अभियोजन की जवाबदेही तय करने से स्थिति बदलेगी। तेज़ और निष्पक्ष न्याय ही उन हज़ारों कैदियों की उम्मीद जगा सकता है, जिनकी सज़ा अभी तय नहीं, पर सज़ा जैसा जीवन सालों से झेल रहे हैं।
कैदियों की जिंदगी पर भारी लापरवाही
एनडीपीएस जैसे मामलों में पुलिसकर्मियों के बार-बार अदालत में अनुपस्थित रहने से मुकदमे वर्षों खिंचते हैं। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने इसे ‘न्यायिक व्यवस्था की खुली अवहेलना’ कहा है। अदालत ने चेताया कि जब अभियोजन पक्ष ही मुकदमा आगे नहीं बढ़ाएगा, तो ‘कड़ा कानून’ केवल कागजी दावा बन कर रह जाएगा।
जमानत नहीं, इंतजार मिलता है
सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश हैं कि जेल अपवाद होनी चाहिए, ज़मानत नियम। लेकिन पंजाब की जेलों में यह बात उलट दिख रही है। आरोपी ज़मानत के हकदार हैं, पर उन्हें सालों तक सुनवाई की प्रतीक्षा में रखा जाता है।
पुल्सा का हस्तक्षेप लेकिन सफर लंबा
पंजाब राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (पुल्सा) ने ‘मिशन मोड पंजाब’ के तहत अब तक 460 विचाराधीन कैदियों की पहचान की है। इनमें से 406 मामलों में आपराधिक अपीलें भी दायर हो चुकी हैं। जस्टिस दीपक सिब्बल के नेतृत्व में जेलों तक कानूनी सहायता पहुंचाने की कोशिश हो रही है, लेकिन न्याय की गाड़ी अभी भी धीमी है।