गाद-गर्दिश में सभी रकबे रेखाएं धंस गयीं
नांगल सोहल के किसान हरपिंदर सिंह ने कहा, 'हमारी धान की फसल पहले ही बर्बाद हो चुकी है। हमें डर है कि हम गेहूं भी नहीं बो पाएंगे। गाद सूखने में कम से कम तीन-चार हफ्ते लगेंगे। इसके अलावा, सड़कें टूटी हुई हैं।' घोनेवाल के एक छोटे किसान सुरजीत सिंह के पास सिर्फ एक एकड़ ज़मीन है। उन्होंने कहा, 'फिलहाल मेरा अपने खेत में जाने का मन नहीं कर रहा। मेरे पड़ोसियों ने मुझे बताया कि मेरे खेत में लगभग 40 से 45 फुट गहरा गड्ढा बन गया है।' नदी के किनारे के सबसे नजदीकी लगने वाले खेत सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। हालांकि, नदी के किनारे से दूर बसे गांव भी इससे नहीं बच पाए हैं।
गाद निकालते के साथ ही यह मुश्किल खत्म नहीं हो जाती। खेतों की सीमाओं के मिटने का मतलब है कि किसानों को अपनी जमीन पहचानने से पहले ही एक नयी निशानदेही (जमीन का सीमांकन) करनी होगी। पीढ़ियों की पहचान धुल गई है और खेतों की सीमाओं को लेकर अनिश्चितता का माहौल है।
किसानों को अपने खेतों से रेत बेचने की अनुमति देने की सरकारी घोषणा से उनकी चिंता और बढ़ गई है। एक सीमांत किसान जोगिंदर सिंह ने कहा, 'इसके लिए भारी संसाधनों की जरूरत है और यह अनुमति सिफ 15 नवंबर तक है। हम इतनी रेत कहां जमा करेंगे और कौन खरीदेगा? आखिरकार, जो लोग पहले से ही रेत के कारोबार में हैं, वे इसे हमसे औने-पौने दामों पर खरीद लेंगे।'