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जहां से जीवन की दौड़ शुरू की, वहीं से होगी विदाई : फौजा सिंह का अंतिम संस्कार रविवार को उनके पैतृक गांव बीस में

मैराथन की दुनिया में मिसाल बने 114 वर्षीय फौजा सिंह अब अपनी अंतिम यात्रा पर हैं—ठीक वहीं से, जहां उन्होंने जीवन की दौड़ शुरू की थी। उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव बीस में हो,...
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मैराथन की दुनिया में मिसाल बने 114 वर्षीय फौजा सिंह अब अपनी अंतिम यात्रा पर हैं—ठीक वहीं से, जहां उन्होंने जीवन की दौड़ शुरू की थी। उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव बीस में हो, और यह इच्छा रविवार को पूरी की जाएगी।उनके बेटे हरविंदर सिंह ने बताया कि बहन गांव पहुंच चुकी है और भाई भी शाम तक आ जाएगा। इसके बाद रविवार दोपहर 12 बजे अंतिम संस्कार किया जाएगा।

उन्होंने यह भी बताया कि हादसे से जुड़े युवक का परिवार संवेदना व्यक्त करने के लिए उनसे मिलने आया था। वे कह रहे थे कि लड़का डर गया था, इसलिए मौके से भाग गया।

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फौजा सिंह का जीवन अनुशासन, सादगी और संकल्प की जीवंत मिसाल रहा। 100 वर्ष की उम्र पार करने के बाद भी वे प्रतिदिन गांव में टहलना नहीं छोड़ते थे। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि सड़क पर चलना खतरनाक हो सकता है, इसलिए मैं गांव के भीतर ही वॉक करता हूं। यही मेरी सेहत का राज है।

अब वे उसी मिट्टी में विलीन होंगे, जिसने उन्हें दुनिया की सबसे लंबी दौड़ों का धावक और लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बनाया।

वो रूकता तो बच जाते उनके पिता....

बता दें कि मंगलवार को जालंधर-पठानकोट रोड पर फौजा सिंह को एक तेज़ रफ्तार एसयूवी ने टक्कर मार दी थी। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, वे सड़क पार कर रहे थे, तभी वाहन की चपेट में आ गए और हवा में उछल पड़े। आरोपी चालक अमृतपाल सिंह ढिल्लों (26) को सीसीटीवी फुटेज के आधार पर जालंधर के पास दसूपुर गांव से गिरफ्तार किया गया। वह हाल ही में कनाडा से लौटा था और उसके पास 2027 तक वैध वर्क परमिट था। हरविंदर सिंह ने बताया कि ढिल्लों के परिवार के कुछ सदस्य गांव आकर संवेदना जता चुके हैं। उन्होंने कहा कि अगर वो रुकता और मदद करता तो शायद पिता की जान बच सकती थी। डरकर भागना किसी भी तरह से सही नहीं था। अब मामला कानून के हाथ में है।

 

 

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