बाढ़ खेत को खा गयी : सीमा पर रावी ने निगली 50 एकड़ जमीन
कक्कड़ के सुखराजबीर पाल सिंह गिल ने कहा कि जब ग्रामीण जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे थे, तब उफनते पानी ने तबाही मचा दी। उन्होंने कहा, 'रावी नदी ने अपना रास्ता बदल दिया, इसका पनी हमारे खेतों तक पहुंच गया और उपजाऊ जमीनों को बहा ले गया। हम बेबस होकर देखते रह गए कि हमारी पुश्तैनी जमीन कैसे गायब हो गई।'
ग्रामीणों के लिए यह नुकसान आर्थिक ही नहीं, बल्कि भावनात्मक भी है। सुखराजबीर ने दुख जताते हुए कहा, 'यहां ज्यादातर परिवार पूरी तरह खेती पर निर्भर हैं। हमारी रोजी-रोटी चौपट हो गई है। हमें अपने खेतों तक पहुंचने के लिए सुरक्षा मंजूरी की जरूरत होती थी, अब नदी ने हमारी वो जमीन छीन ली, जिस पर हम पीढ़ियों से काम करते आए थे।' सुखराजबीर और उनके तीन भाइयों के पास लगभग 50 एकड़ जमीन थी, जिसमें से 15 एकड़ कटाव की भेंट चढ़ गई है।
छह एकड़ जमीन के मालिक कुलबीर सिंह गिल ने राज्य और केंद्र सरकार दोनों पर उन किसानों की दुर्दशा की अनदेखी करने का आरोप लगाया, जिनकी जमीन सीमा पर है। उन्होंने कहा, 'हम पहले से ही हाशिये पर जी रहे थे। कटाव ने हमारी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।'
रानिया गांव के जसबीर सिंह ने कहा कि बाढ़ का पानी पूरी तरह से कम नहीं होने के कारण उनका नुकसान जारी है। उन्होंने कहा, 'कटाव जारी है। हमारी जमीन हमारी आंखों के सामने लगातार खत्म होती जा रही है।'
हरजीत सिंह ने कहा कि जमीन उनके लिए न सिर्फ कमाई का जरिया थी, बल्कि उनकी पहचान भी थी। उन्होंने कहा, 'इसे खत्म होते देखना दिल दहला देने वाला है। हमें सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है, क्योंकि हमारे खेत रावी और मौसमी सक्की नाले के बीच पड़ते हैं।' कुछ ग्रामीणों ने अपनी परेशानियों के लिए ऊपरी बांधों से पानी के अनियमित बहाव को जिम्मेदार ठहराया।
नुकसान ज्यादा, मुआवजा कम!
जिला प्रशासन नुकसान का आकलन कर रहा है, लेकिन ग्रामीणों को आशंका है कि मुआवजा दीर्घकालिक नुकसान की भरपाई के लिए पर्याप्त नहीं होगा। उपायुक्त साक्षी साहनी ने कहा कि राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (एसडीआरएफ) के नियमों के अनुसार मुआवजा दिया जाएगा। उन्होंने कहा, 'किसानों को जमीन के नुकसान के लिए 47,000 रुपये प्रति हेक्टेयर, फसल के नुकसान के लिए 20,000 रुपये प्रति एकड़ और अतिरिक्त इनपुट सब्सिडी मिलेगी।' वहीं, जम्हूरी किसान सभा के नेता रतन सिंह रंधावा ने राहत राशि को बहुत कम बताते हुए कहा कि सरकार को उन लोगों को 45 लाख रुपये प्रति एकड़ देना चाहिए, जिनकी जमीन बह गई है।