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1993 Fake Encounter Case : 30 साल बाद मिला इंसाफ, 1993 के फर्जी एनकाउंटर केस में 5 पूर्व पुलिसकर्मी दोषी

पंजाब: 1993 के फर्जी मुठभेड़ मामले में पांच पूर्व पुलिसकर्मी दोषी करार
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1993 Fake Encounter Case : मोहाली की एक केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) अदालत ने एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सहित पांच पूर्व पुलिस अधिकारियों को 1993 में हुई फर्जी मुठभेड़ में शामिल होने का दोषी ठहराया है। इस मामले में तरनतारन जिले के सात लोगों की मौत हो गई थी।

न्यायाधीश बलजिंदर सिंह सरा की अदालत ने शुक्रवार को उन्हें आपराधिक साजिश, हत्या और सबूत मिटाने का दोषी पाया। सजा चार अगस्त को सुनाई जाएगी। जिन लोगों को दोषी ठहराया गया है उनमें पूर्व पुलिस उपाधीक्षक भूपिंदरजीत सिंह (जो बाद में एसएसपी के पद से सेवानिवृत्त हुए), पूर्व सहायक उपनिरीक्षक दविंदर सिंह (जो डीएसपी के पद से सेवानिवृत्त हुए), पूर्व सहायक उपनिरीक्षक गुलबर्ग सिंह, पूर्व निरीक्षक सूबा सिंह और पूर्व एएसआई रघबीर सिंह शामिल हैं।

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सात पीड़ितों में से तीन विशेष पुलिस अधिकारी थे। सीबीआई की जांच से पता चला कि सिरहाली थाने के तत्कालीन थाना प्रभारी (एसएचओ) गुरदेव सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस दल 27 जून 1993 को एक सरकारी ठेकेदार के निवास से एसपीओ शिंदर सिंह, देसा सिंह, सुखदेव सिंह और बलकार सिंह व दलजीत सिंह नामक दो अन्य लोगों को साथ ले गया। सीबीआई ने पाया कि इन व्यक्तियों को डकैती के मामले में झूठा फंसाया गया था।

इसके बाद दो जुलाई 1993 को सिरहाली पुलिस ने शिंदर सिंह, देसा सिंह और सुखदेव सिंह के खिलाफ मामला दर्ज किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि वे सरकारी हथियारों के साथ फरार हो गए। बारह जुलाई 1993 को तत्कालीन डीएसपी भूपिंदरजीत सिंह और तत्कालीन निरीक्षक गुरदेव सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस दल ने दावा किया कि डकैती के एक मामले में वसूली के लिए मंगल सिंह नामक व्यक्ति को घड़का गांव ले जाते समय उन पर आतंकवादियों ने हमला किया था। इसके बाद हुई गोलीबारी में मंगल सिंह, देसा सिंह, शिंदर सिंह और बलकार सिंह मारे गए।

हालांकि, जांच के अनुसार, जब्त हथियारों के फोरेंसिक विश्लेषण में गंभीर विसंगतियां सामने आईं और पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पुष्टि हुई कि पीड़ितों को उनकी मृत्यु से पहले प्रताड़ित किया गया था। सीबीआई जांच में कहा गया है कि अभिलेखों में उनकी पहचान होने के बावजूद, उनके शवों का अंतिम संस्कार लावारिस के रूप में कर दिया गया। जांच में दावा किया गया कि 28 जुलाई 1993 को तत्कालीन डीएसपी भूपिंदरजीत सिंह के नेतृत्व वाली पुलिस टीम के साथ हुई फर्जी मुठभेड़ में तीन अन्य व्यक्ति सुखदेव सिंह, सरबजीत सिंह और हरविंदर सिंह मारे गए थे।

पंजाब में अज्ञात शवों के सामूहिक दाह संस्कार के संबंध में 12 दिसंबर 1996 को उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद यह मामला सीबीआई को सौंप दिया गया था। सीबीआई ने शिंदर सिंह की पत्नी नरिंदर कौर की शिकायत के आधार पर 1999 में मामला दर्ज किया था। पांच अन्य आरोपी पुलिस अधिकारियों की मुकदमे के दौरान मृत्यु हो गई।

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