Worst Banking Crisis : बैंक मुद्दे पर गरमाई सियासत, जयराम की टिप्पणी पर भाजपा का तीखा हमला
बैंकों के अधिग्रहण मुद्दे पर जयराम रमेश की टिप्पणी के बाद भाजपा ने कांग्रेस पर निशाना साधा
Worst Banking Crisis : भाजपा ने देश में विदेशी कंपनियों द्वारा बैंकों का अधिग्रहण किए जाने के मुद्दे पर जयराम रमेश की टिप्पणी के बाद रविवार को कांग्रेस पर निशाना साधा और कहा कि स्वतंत्र भारत में ‘‘सबसे खराब बैंकिंग संकट'' का दौर लाने वाली पार्टी किसी को भी उपदेश देने की स्थिति में नहीं है।
कांग्रेस के संचार मामलों के प्रभारी महासचिव रमेश ने कहा कि विदेशी कंपनियों को धीरे-धीरे भारतीय बैंकों का अधिग्रहण करने की अनुमति देना ‘‘अविवेकपूर्ण'' है, क्योंकि इससे काफी जोखिम पैदा होता है। जनसंघ ने जुलाई 1969 में विदेशी बैंकों का राष्ट्रीयकरण नहीं करने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आलोचना की थी।
राज्यसभा सदस्य ने ‘एक्स' पर एक पोस्ट में कहा कि सबसे पहले, लक्ष्मी विलास बैंक का अधिग्रहण सिंगापुर के डीबीएस समूह ने किया। दूसरा, कैथोलिक सीरियन बैंक का अधिग्रहण कनाडा के फेयरफैक्स ने किया। तीसरा, जापान के सुमितोमो मित्सुई बैंकिंग कॉर्पोरेशन ने येस बैंक का अधिग्रहण किया। अब खबर आ रही है कि दुबई की एमिरेट्स एनबीडी आरबीएल बैंक का अधिग्रहण कर रही है और निश्चित रूप से, भारत में किसी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक का पहला पूर्ण निजीकरण इसी वित्त वर्ष में पूरा होने की उम्मीद है। यह आईडीबीआई बैंक की बिक्री है।
रमेश पर पलटवार करते हुए भाजपा के आईटी प्रकोष्ठ के प्रमुख अमित मालवीय ने कहा कि उस व्यक्ति से बैंकिंग विवेक पर व्याख्यान सुनना ‘‘थोड़ा अजीब'' है, जिसकी पार्टी ने ‘‘भारत की बैंकिंग प्रणाली के पतन की पटकथा लिखी''। संप्रग के तहत भारतीय बैंक राजनीतिक खिलौने बनकर रह गए थे..., खराब ऋणों में भारी वृद्धि हुई, घोटाले बढ़ गए और दोहरी ‘बैलेंस शीट' के संकट ने पूरे वित्तीय क्षेत्र को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। कांग्रेस ने ‘‘व्यवस्था में सड़न'' पैदा की है।
भाजपा नेता ने कहा कि यहां तक कि आपके प्रशंसक रघुराम राजन ने भी पुष्टि की है कि बैंकों को परेशान करने वाले खराब ऋण बड़े पैमाने पर संप्रग काल के दौरान मंजूर किए गए थे। जिस पार्टी ने स्वतंत्र भारत में सबसे खराब बैंकिंग संकट की ‘अध्यक्षता' की, वह किसी को भी विवेक पर उपदेश देने की स्थिति में नहीं है। जब 2014-15 में संप्रग सरकार सत्ता से बाहर हुई, तो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का शुद्ध एनपीए 2.15 लाख करोड़ रुपये (3.9 प्रतिशत) था और प्रावधान कवरेज महज 46 प्रतिशत थी। आज, एक दशक के अथक सफाई और सुधार के बाद, ये आंकड़े भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में उल्लेखनीय बदलाव की कहानी बयां करते हैं।
मालवीय ने कहा कि शुद्ध एनपीए घटकर मात्र 0.73 लाख करोड़ रुपये (0.76 प्रतिशत) रह गया। पूंजी पर्याप्तता 11.45 प्रतिशत से बढ़कर 15.55 प्रतिशत हो गई। प्रावधान कवरेज 46 प्रतिशत से दोगुना होकर 93 प्रतिशत हो गई। कुल शुद्ध लाभ 0.45 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 1.41 लाख करोड़ रुपये हो गया। यह ‘‘बदलाव'' भारतीय रिजर्व बैंक के सख्त नियमन, मजबूत प्रशासनिक ढांचे, आईबीसी-संचालित सुधार और गहन संरचनात्मक सुधारों का परिणाम है।
मालवीय ने यह भी कहा कि आज भारतीय बैंक मजबूत, लाभदायक और विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित हैं - जो कांग्रेस द्वारा छोड़ी गई अव्यवस्था के बिलकुल विपरीत है। एक और विरूपण को स्पष्ट कर दें: अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के निवेश और संचालन आरबीआई की सख्त निगरानी के अधीन हैं तथा वित्तीय क्षेत्र के वैश्वीकरण के लिए भारत के संतुलित दृष्टिकोण के अंतर्गत आते हैं। ये भारत की बैंकिंग प्रणाली में वैश्विक विश्वास के संकेत हैं, ऐसा विश्वास जिसकी आपके कार्यकाल में कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, जब विदेशी निवेशक देश छोड़कर भाग रहे थे।