मुंबई, 14 मई (एजेंसी)
बम्बई हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को उस महिला की राज्य पुलिस विभाग में नियुक्ति को 2 महीने के भीतर अंतिम रूप देने का निर्देश दिया है, जिसने संबंधित परीक्षा तो उत्तीर्ण कर ली थी, लेकिन मेडिकल के दौरान यह बात सामने आने के बाद अपना पद गंवा बैठी कि वह एक ‘पुरुष’ है। अदालत ने यह फैसला पिछले हफ्ते उस वक्त सुनाया, जब राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोनी ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने महिला को पुलिस विभाग में नियुक्त करने का फैसला किया है, लेकिन ‘कांस्टेबल से इतर पद’ पर। उन्होंने कहा कि विशेष आईजी (नासिक) महिला की योग्यता को ध्यान में रखते हुए राज्य के गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को एक सिफारिश सौंपेंगे। याचिकाकर्ता महिला के लिए रोजगार की शर्तें और लाभ उसके स्तर के अन्य कर्मचारियों के समान होंगे, जिन्हें मानक प्रक्रिया के तहत भर्ती किया जाता है। पीठ ने राज्य की ओर से कही गई बात स्वीकार कर ली और तदनुसार प्रक्रिया को पूरा करने के लिए राज्य सरकार और पुलिस विभाग को 2 महीने का समय दिया। पीठ ने आदेश पारित करते हुए कहा, ‘यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण मामला है। याचिकाकर्ता में कोई दोष नहीं निकाला जा सकता, क्योंकि उसने एक महिला के रूप में अपना करियर बनाया है।’
यह है मामला
पीठ 23 वर्षीय महिला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने अनुसूचित जाति (एससी) श्रेणी के तहत नासिक ग्रामीण पुलिस भर्ती 2018 के लिए आवेदन किया था। उसने लिखित और शारीरिक परीक्षण उत्तीर्ण की। हालांकि, बाद में मेडिकल में पता पता चला कि उसके पास गर्भाशय और अंडाशय नहीं है। अन्य जांच से पता चला कि उसके पास पुरुष और महिला दोनों गुणसूत्र थे और इसमें कहा गया कि वह ‘पुरुष’ थी। इसके बाद महिला ने यह कहते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया कि उसे अपने शरीर के बारे में इन तथ्यों की जानकारी नहीं थी। उसने कहा कि वह जन्म से ही एक महिला के रूप में रह रही थी और उसके सभी शैक्षिक प्रमाणपत्र और व्यक्तिगत दस्तावेज एक महिला के नाम से पंजीकृत हैं। उसे केवल इसलिए भर्ती से वंचित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि ‘कार्योटाइपिंग क्रोमोसोम’ जांच ने उसे पुरुष घोषित कर दिया है।