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बिन पैरों हजारों के सपने परों से सजायेे

हौसले से शक्ति की मिसाल बनीं गीतांजलि

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रामकुमार तुसीर/ निस

सफीदों, 8 अप्रैल

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नौ महीने की उम्र में पहले पोलियो हो गया, फिर एक डॉक्टर ने ऐसा इंजेक्शन लगाया कि दोनों पैर गंवाने पड़े। बदकिस्मती के डबल अटैक से किसी की भी हिम्मत टूट जाती, लेकिन मां भारती की एक बेटी ने अपनी हिम्मत और हौसले से न केवल अपनी किस्मत की लकीरें बदलीं, बल्कि दूसरों को भी अपनी जिंदगी संवारने में मदद की। पैर छिन गये, लेकिन कुदरत ने उसे हौसला इतना दिया कि वह हजारों महिलाओं को उनके पैरों पर खड़ी करने में

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कामयाब हुई।

यह कहानी है गीतांजलि कंसल (42) की। उनके पिता शिवचरण कंसल ने बताया कि सितंबर 1981 में जन्मी गीतांजलि को 9 माह की उम्र में पोलियो हो गया। तब वे गांव डिडवाड़ा में रहते थे। वह उसे सफ़ीदों के एक निजी चिकित्सक के पास ले गये, उसके लगाये इंजेक्शन के बाद गीतांजलि के दोनों पैर चले गए। शिवचरण कहते हैं कि उन्होंने दस साल तक कई बड़े अस्पतालों में दिखाया, लेकिन बात नहीं बनी। इसी बीच उसकी स्कूल की पढ़ाई चलती रही। सरस्वती स्कूल से बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। पढ़ाई के साथ-साथ जनसेवा का जुनून जागा तो बीस वर्ष की आयु में गीतांजलि यहां की समाजसेवी संस्था ‘वुमन एरा फाउंडेशन’ से जुड़ गयीं।

गीतांजलि ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से बीए, एमए (अंग्रेजी), एमए (हिंदी) पास की। मेहंदी लगाने व पेंटिंग में पारंगत गीतांजलि ने बताया कि वह अब तक करीब ढाई हजार महिलाओं को मेहंदी, पेंटिंग व सिलाई का प्रशिक्षण देकर उन्हें पैरों पर खड़ा होने में मदद कर चुकी हैं। गीतांजलि का घर उनकी बनाई पेंटिंगों से सजा है। उन्हें मिले स्मृति चिन्ह व अवार्ड आगंतुक को पहली नजर में इशारा करते हैं कि इस घर में कुछ खास है।

गीतांजलि कहती हैं कि जीवन में कोई कमी रह जाए तो इंसान को कभी हीन भावना का शिकार नहीं होना चाहिए। दूसरे जरूरतमंदों को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश उनकी प्राथमिकता रही और आज वह भाग्यशाली हैं कि खुद को इसमें सफल पाकर आनंद महसूस कर रही हैं।

कर्मठ कन्याएं

वरात्र नि:संदेह नारी-शक्ति को प्रतिष्ठित करने का पर्व है। इसके आध्यात्मिक-सामाजिक निहितार्थ यही हैं कि हम अपने आसपास रहने वाली उन बेटियों के संघर्ष का सम्मानपूर्वक स्मरण करें जिन्होंने अथक प्रयासों से समाज में विशिष्ट जगह बनायी। साथ ही वे समाज में दूसरी बेटियों के लिए प्रेरणास्रोत भी बनीं। दैनिक ट्रिब्यून ने इसी कड़ी में नवरात्र पर्व पर उन देवियों के असाधारण कार्यों को अपने पाठकों तक पहुंचाने का एक विनम्र प्रयास किया है, जो सुर्खियों में न आ सकीं। उनका योगदान उन तमाम बेटियों के लिए प्रेरणादायक होगा जो अनेक मुश्किलों के बीच अपना अाकाश तलाशने में जुटी हैं।

-संपादक

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