नयी दिल्ली, 19 जून (एजेंसी)
यह उनके जीवन की सबसे बड़ी दौड़ थी, लेकिन पलक झपकने के अंतर से मिल्खा सिंह पदक से चूक गए। रोम ओलंपिक 1960 की उस दौड़ ने उन्हें ऐसा नासूर दिया जिसकी टीस जिंदगी भर उन्हें कचोटती रही । 91 वर्ष के फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह का कोरोना संक्रमण से जूझने के बाद चंडीगढ में कल देर रात निधन हो गया। रोम ओलंपिक 1960 और टोक्यो ओलंपिक 1964 में उनके साथी रहे बाधा धावक गुरबचन सिंह रंधावा उन चुनिंदा जीवित एथलीटों में से हैं, जिन्होंने मिल्खा सिंह की 400 मीटर की वह दौड़ देखी थी। 82 वर्ष के रंधावा ने कहा, ‘मैं वहां था और पूरे भारतीय दल को उम्मीद थी कि रोम में इतिहास रचा जायेगा। हर कोई सांस थाम कर उस दौड़ का इंतजार कर रहा था। वह शानदार फॉर्म में थे और उनकी टाइमिंग उस समय दुनिया के दिग्गजों के बराबर थी। स्वर्ण या रजत मुश्किल था, लेकिन सभी को कांसे के तमगे का तो यकीन था। वह इसमें सक्षम था।’ मिल्खा ने वह दौड़ 45 . 6 सेकंड में पूरी की और वह दक्षिण अफ्रीका के मैल्कम स्पेंस से 0.1 सेकंड से चूक गए। उन्होंने 1958 में इसी प्रतिद्वंद्वी को पछाड़कर राष्ट्रमंडल खेलों का स्वर्ण जीता था। रंधावा ने कहा, ‘ पूरा भारतीय दल स्तब्ध रह गया। निशब्द। मिल्खा सिंह तो बेहाल थे। वह 200 मीटर से 250 मीटर तक आगे चल रहे थे, लेकिन बाद में उन्होंने एक गलती की और धीमे हो गए। इससे एक शर्तिया कांस्य उनके हाथ से निकल गया।’ मिल्खा को जिंदगी भर इस चूक का मलाल रहा।