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167 साल पहले : लाल के बलिदान से गांव की अंतिम 'राखी' थी वह

अंग्रेजों ने तोप से उड़ा दिया था हरियाणा के वीर गिरधरलाल को
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शहीद (इनसेट) के नाम पर कैथल-करनाल रोड पर बना चौक।
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हरियाणा का एक गांव ऐसा है जहां रक्षाबंधन के दिन एक शहीद को नमन किया जाता है। यहां के लोग राखी का पर्व नहीं मनाते। क्योंकि इसी पर्व के दिन सन 1857 में अंग्रेजों ने 30 वर्ष के युवा गिरधरलाल अाहलुवालिया को तोप से उड़ा दिया था।

कैथल जिले के पूंडरी खंड के गांव फतेहपुर के लिए रक्षाबंधन का दिन भावनात्मक स्मृति है। बीते 167 वर्षों से इस गांव में सुलिहान गोत्र के सैकड़ों परिवार रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाते। हालांकि साल 2006 में, हरियाणा सरकार ने पूंडरी में शहीद के सम्मान में करनाल-कैथल राजमार्ग के थाना चौक पर उनकी प्रतिमा स्थापित कर उसे ‘शहीद गिरधरलाल आहलुवालिया चौक’ नाम दिया। इसके बाद सुलिहान गोत्र के कुछ मौजिज लोगों ने एक बैठक की और आहलुवालिया समाज के करीब 100 परिवारों ने रक्षाबंधन मनाना शुरू कर दिया, लेकिन आज भी करीब 300 से 400 परिवार रक्षाबंधन पर्व नहीं मनाते।

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फतेहपुर से सुलिहान गोत्र के कंवलजीत अाहलुवालिया जो हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड के सदस्य भी हैं, ने दैनिक ट्रिब्यून से बातचीत में कहा कि कुछ परिवारों को छोड़कर आज भी सुलिहान गोत्र के सैकड़ों परिवार रक्षाबंधन नहीं मनाते। इस दिन ये परिवार गिरधरलाल चौक पर हवन करके शहीद को श्रद्धांजलि देते हैं। उन्होंने बताया कि इस बार 9 अगस्त को सुबह 9 बजे गिरधरलाल लाइब्रेरी में स्मृति दिवस मनाया जाएगा। कंवलजीत का कहना है कि गांव वालों के मन में आज भी एक टीस है कि गांव का नाम बदलकर शहीद गिरधरलाल नहीं किया जा सका। फतेहपुर नाम मुगलों का दिया गया है जो उन्हें आज भी गुलामी की याद दिलाता है।

स्मृति लाइब्रेरी खंडहर में तबदील : गांव के सरपंच सोहन लाल का कहना है कि हरियाणा सरकार ने 1985 में शहीद गिरधरलाल के नाम से गांव में एक लाइब्रेरी बनाई थी। गांव की पंचायत ने लाइब्रेरी के लिये जमीन दी थी और तत्कालीन मुख्यमंत्री ने ग्रांट मंजूर की थी, लेकिन आज तक इस लाइब्रेरी में किताबें नहीं पहुंची। इसके रखरखाव पर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया।

तब एक मां ने बचाया था पूरा गांव

गिरधरलाल का जन्म सन्ा 1827 में गांव फतेहपुर के एक किसान परिवार में हुआ था। बाल्यकाल से ही उन्होंने अंग्रेजों के अत्याचार देखे तो क्रांति की राह पकड़ ली। वह 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे और अंग्रेज अधिकारियों के खिलाफ विद्रोही गतिविधियों में शामिल हो गए। सावन के महीने में, कैथल के तत्कालीन अंग्रेज मजिस्ट्रेट मैकब अपने सिपाहियों के साथ लगान वसूली के लिए फतेहपुर पहुंचा और ग्रामीणों पर अत्याचार करने लगा। तभी गिरधरलाल वहां पहुंचे और घोड़े पर बैठे उस अंग्रेज अफसर को लाठी के एक ही वार से ढेर कर दिया। इस घटना के बाद गिरधरलाल अंग्रेजों की हिट लिस्ट में आ गए। भारी पुलिस बल गांव में भेजा गया। अंग्रेजों ने गांव के ‘पंजावे’ (ईंट भट्ठा) पर तोप तैनात कर और गांव वालों को धमकी दी कि गिरधरलाल को सौंप दो, नहीं तो पूरे गांव को तोप से उड़ा देंगे। गांव के लोग उन्हें सौंपने को तैयार नहीं थे, लेकिन गिरधरलाल की मां ने गांव को बचाने के लिये बेटे को अंग्रेजों को सौंप दिया। उस दिन रक्षाबंधन था, सारे गांव से महिलाओं ने उन्हें राखी बांधी और अंग्रेजों को सौंप दिया। अंग्रेज गिरधरलाल को गांव मुंदड़ी के पास काली माटी जगह पर ले गए और वहां तोप से उड़ा दिया।

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