Verdict Deadline सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के लिए तय की 3 महीने की समयसीमा
Verdict Deadline सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के लिए फैसला सुनाने की अधिकतम तीन महीने की समयसीमा निर्धारित की है। अदालत ने आदेश दिया है कि यदि इस अवधि के दो सप्ताह बाद भी फैसला नहीं सुनाया जाता, तो मामला किसी अन्य न्यायाधीश को सौंप दिया जाएगा।
हाईकोर्ट में महीनों तक फैसले सुरक्षित रखने की परंपरा पर हैरानी जताते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसी स्थिति न्याय प्रक्रिया पर से आमजन का भरोसा कमजोर करती है। जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने इसे 'बेहद चौंकाने वाला और आश्चर्यजनक' करार दिया। उन्होंने कहा कि जब लंबे समय तक फैसले नहीं सुनाए जाते, तो वादकारी का विश्वास न्यायपालिका से उठ जाता है और न्याय की मूल भावना पर आघात होता है।
पीठ की ओर से लिखे गए निर्णय में जस्टिस मिश्रा ने कहा कि बार-बार ऐसे मामले सामने आते हैं, जिनमें हाईकोर्ट में कार्यवाही तीन महीने से अधिक लंबित रहती है। कई मामलों में छह महीने या वर्षों तक भी फैसला सुरक्षित रखा जाता है। कुछ हाईकोर्ट अंतिम आदेश तो सुना देते हैं, लेकिन कारणयुक्त निर्णय नहीं देते और इसे लंबे समय तक टालते हैं, जिससे प्रभावित पक्ष आगे न्याय पाने के अवसर से वंचित रह जाता है।
पीठ ने यह भी कहा कि अधिकांश हाईकोर्ट में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, जिसके तहत वादकारी निर्णय में देरी की जानकारी संबंधित पीठ या चीफ जस्टिस तक पहुंचा सके। अदालत ने निर्देश दिया कि यदि तीन महीने में फैसला नहीं सुनाया जाता, तो हाईकोर्ट का रजिस्ट्रार जनरल मामला मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखेगा। इसके बाद चीफ जस्टिस संबंधित पीठ को आदेश देंगे कि वह दो सप्ताह के भीतर निर्णय सुनाए, अन्यथा मामला किसी अन्य पीठ को सौंप दिया जाएगा।
यह आदेश रविंद्र प्रताप शाही द्वारा दायर अपीलों पर आया। उन्होंने 2008 से लंबित एक आपराधिक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के कुछ अंतरिम आदेशों को चुनौती दी थी। इस मामले में एक पक्ष ने अपील की जल्दी सुनवाई और निपटारे के लिए नौ बार हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन कोई अंतिम फैसला नहीं आया।
अंततः इलाहाबाद हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने 24 दिसंबर 2021 को आपराधिक अपील पर आदेश सुरक्षित रख लिया, लेकिन लगभग एक साल तक फैसला नहीं सुनाया। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने इसे 9 जनवरी 2023 को नियमित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि यह बेहद चौंकाने वाली और आश्चर्यजनक बात है कि अपील की सुनवाई पूरी होने के लगभग एक साल बाद तक भी फैसला नहीं सुनाया गया।