अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दो बड़े फैसलों को उनके अपने देश में चुनौती दी गई है। भारतीय वस्तुओं पर 50 फीसदी टैरिफ के उनके कदम के खिलाफ अमेरिकी संसद में प्रस्ताव पेश किया गया है। वहीं, एच1बी वीजा फीस में भारी-भरकम बढ़ोतरी के खिलाफ 19 अमेरिकी राज्य अदालत पहुंच गये हैं।
अमेरिका के तीन प्रभावशाली सांसदों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से भारतीय वस्तुओं पर लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ को खत्म करने के लिए कांग्रेस (अमेरिकी संसद) में एक प्रस्ताव पेश किया है। उत्तर कैरोलाइना की प्रतिनिधि डेबोरा रॉस, टेक्सास के प्रतिनिधि मार्क वेसी और इलिनोइस के प्रतिनिधि राजा कृष्णमूर्ति ने प्रस्ताव में कहा है कि भारत के प्रति इस गैर-जिम्मेदाराना टैरिफ रणनीति के प्रतिकूल परिणाम होंगे, जिससे यह महत्वपूर्ण साझेदारी कमजोर पड़ेगी।
प्रस्ताव में उस राष्ट्रीय आपातकाल आदेश को समाप्त करने की बात कही गई है, जिसे ट्रंप ने अंतर्राष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्तियां अधिनियम के तहत भारतीय वस्तुओं पर व्यापक शुल्क लगाने के लिए लागू किया है।
कृष्णमूर्ति ने कहा कि अमेरिकी हितों या सुरक्षा को बढ़ावा देने के बजाय ये टैरिफ आपूर्ति शृंखला को बाधित करते हैं, अमेरिकी श्रमिकों को नुकसान पहुंचाते हैं और उपभोक्ताओं के लिए लागत बढ़ाते हैं। अमेरिका इन हानिकारक टैरिफ को समाप्त करके भारत के साथ मिलकर साझा आर्थिक और सुरक्षा आवश्यकताओं को आगे बढ़ाने में सक्षम होगा।
एच1बी वीजा एक लाख डॉलर फीस को 19 राज्यों की चुनौती
न्यूयॉर्क (एजेंसी) : अमेरिका के 19 राज्यों ने नये एच-1बी वीजा आवेदनों पर एक लाख डॉलर शुल्क लगाने के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के फैसले को गैरकानूनी बताते हुए मुकदमा दायर किया है। राज्यों ने चेतावनी दी है कि इस कदम से स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और प्रौद्योगिकी जैसे प्रमुख क्षेत्रों में श्रमिकों की कमी बढ़ जाएगी।
न्यूयॉर्क की अटॉर्नी जनरल लेटिशिया जेम्स ने 18 अन्य अटॉर्नी जनरल के साथ मिलकर शुक्रवार को मैसाचुसेट्स के अमेरिकी जिला न्यायालय में यह मुकदमा दायर किया। उन्होंने कानूनी अधिकार या उचित प्रक्रिया के बिना एच-1बी शुल्क में भारी बढ़ोतरी किए जाने को चुनौती दी है।
एच-1बी वीजा कार्यक्रम के तहत उच्च कौशल वाले विदेशी पेशेवरों को अमेरिका में काम करने की अस्थायी रूप से अनुमति मिलती है और भारतीय नागरिक इसका व्यापक रूप से उपयोग करते हैं। मुकदमे में दलील दी गई है कि नये शुल्क से उन सरकारी और गैर-लाभकारी नियोक्ताओं के लिए व्यावहारिक रूप से मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी, जो स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, प्रौद्योगिकी और अन्य क्षेत्रों में आवश्यक सेवाएं प्रदान करने के लिए एच-1बी वीजा धारकों पर निर्भर हैं।

