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सरहद पार यादों की ‘िवकास गंगा’में गोते लगा गौरवान्वित हुआ कुटुंब

जिस सर गंगा राम ने भारत खासकर अिवभाजित पंजाब में संस्थाओं भवनों के निर्माण की गंगा बहा दी थी, उनके लाहौर स्िथत पैतृक िवशाल भवन का पिछले दिनों दिल्ली निवासी उनके वंशजों ने दौरा किया और यादें साझा और ताजा...
लाहौर स्थित सर गंगाराम का पुश्तैनी मकान पहले और अब (बाएं) और इस घर को देखने पहुंचे वंशज, लाहौर के इनके मेजबान और डिजाइनर)।
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जिस सर गंगा राम ने भारत खासकर अिवभाजित पंजाब में संस्थाओं भवनों के निर्माण की गंगा बहा दी थी, उनके लाहौर स्िथत पैतृक िवशाल भवन का पिछले दिनों दिल्ली निवासी उनके वंशजों ने दौरा किया और यादें साझा और ताजा कीं। सर गंगा राम ब्रिटिश राज के दौरान प्रसिद्ध भारतीय सिविल इंजीनियर और राजनीतिज्ञ थे। उन्हें पंजाब (पाकिस्तान) में बुनियादी ढांचे के विकास में उनके योगदान के लिए याद किया जाता है। इनमें कई भवन, नहरें, रेलवे और सड़कों का निर्माण शामिल है। वह लाहौर में सर गंगा राम अस्पताल के संस्थापक थे, जो पाकिस्तान में लाखों लोगों को चिकित्सा सेवा प्रदान करता है। िदल्ली में भी उनके नाम का विशाल अस्पताल और शैक्षणिक संस्थान हैं। इंजीनियरिंग और परोपकार के प्रति उनके जुनून के कारण एक सिविल इंजीनियर और मानवतावादी के रूप में उनके उल्लेखनीय करियर की नींव पड़ी।

 

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अदिति टंडन/ट्रिन्यू

नयी दिल्ली, 27 फरवरी

दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले सर गंगाराम के वंशजों ने इसी महीने की शुरुआत में पाकिस्तान की यात्रा की। सीमापार की उनकी यह यात्रा पहले की यात्राओं से एकदम अलग थी। इस यात्रा ने उनकी दो दशक की मेहनत को पूरा किया और घर की खोज पूरी हुई। इस परिवार के लोगों ने लाहौर स्थित घर के विशाल प्रांगण में साझा और ताजा की पुरानी यादें।

गुरुग्राम में रहने वाली सर गंगा राम की पड़पोती पारुल दत्ता ने बृहस्पतिवार को इस संवाददाता को बताया कि उस घर में रहना, जो उस परिसर का हिस्सा था, जहां मेरे पिता, उनके भाई-बहन और चचेरे भाई-बहन रहते थे, वास्तव में एक अनूठा अनुभव था। मुझे 2004 में लाहौर की अपनी पहली यात्रा के बाद से इसकी तलाश थी। मेरे पिता 1986 में अपने स्कूल, एचिसन कॉलेज, की शताब्दी समारोह में लाहौर गए थे। उन्हें याद था जेल रोड स्थित अपन घर जहां अब एक फ्लाईओवर बन चुका था। उन्होंने बताया कि घर का परिसर इतना बड़ा था कि उन्होंने वहां ड्राइविंग सीखी। बड़े संयुक्त परिवार के लिए वहां बहुत सारे कमरे थे। हालांकि, उन्होंने पाया कि परिसर विभाजित हो गया और इसकी जगह कई छोटे-छोटे घर बन गए थे। उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि जिस घर को वह याद करते हैं, उसका एक छोटा सा टुकड़ा किसी छिपे हुए रत्न की तरह था। पारुल की चचेरी बहन राधिका सेठ कहती हैं, ‘लाहौर की हमारी यात्रा का मुख्य आकर्षण फराज जैदी के मेहमान के रूप में रहना था, जो पहली बार मिलने पर ही हमारे परिवार के सदस्य की तरह बन गए थे।’ उन्होंने कहा, ‘मुझे अपनी मां के निर्देश याद आ गए, जिसमें वह कहती थीं, सड़क पर आओ, जहां एक जेल है, थोड़ी दूर पर एक पागलखाना है, आगे एक कब्रिस्तान है और फिर घर है। वर्तमान हवेली का स्थान बिल्कुल उस विवरण से मेल खाता है।’

 

अब फराज जैदी और अली हसन हैं मालिक

पारुल और उनका परिवार हाल ही में लाहौर में फराज जैदी और अली हसन के मेहमान बने, जो अब उस संपत्ति के मालिक हैं। पहले यही घर सर गंगा राम के परिवार का था। उनका परिवार विभाजन तक यहां रहता था।

क्या हम विभाजन से ऊपर उठ सकते हैं

भावुक होते हुए पारुल कहती हैं, ‘अफसोस है कि लाहौर के घर में रहने वाली पीढ़ी का कोई भी व्यक्ति अब इसे देखने के लिए जीवित नहीं है। मैं सोचती हूं कि उस पीढ़ी के बहुत से ऐसे लोग होंगे जो सीमा के दोनों ओर अपनी जड़ों की यात्रा करना पसंद करेंगे। क्या हम विभाजन से ऊपर उठ सकते हैं और अपने दिल और घरों को उनके लिए खोल सकते हैं।’

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