ट्रिब्यून न्यूज सर्विस
चंडीगढ़, 18 दिसंबर
पश्चिमी कमान के पूर्व जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ ले. जनरल केजे सिंह ने अफगानिस्तान में एक सशक्त और सहिष्णु सरकार की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि तालिबान की सोच खतरनाक है और उस पर हर तरफ से निगरानी की जरूरत है।
मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे दिन चर्चा के दौरान 9/11 और इसके बाद की घटनाओं का उल्लेख करते हुए उन्होंने अफगानिस्तान में तालिबान की बढ़ते वर्चस्व और देश में व्याप्त गुटबंदी का विस्तृत चित्रण पेश किया। उन्होंने इसके समाधान के लिए अफगान-नीत और अफगान-नियंत्रित प्रक्रिया पर जोर दिया लेकिन साथ ही कहा कि अफानिस्तान में तालिबान शासन मौजूदा समय में रावलपिंडी से आईएसआई
नियंत्रित है।
तालिबान की सोच में पहले के मुकाबले मामूली परिवर्तन का जिक्र करते हुए ले. जनरल केजे सिंह ने आगे कहा कि पाकिस्तान पर नकेल कसनी होगी और उसे अफगानिस्तान के मामलों में दखल से रोकना होगा। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान के अनुकूल राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए अंतराष्ट्रीय स्तर पर हर संभव उपाय किये जाने चाहिए क्योंकि वहां की स्थिरता और सुरक्षा का भारत पर भी असर पड़ता है।
अफगानिस्तान के भविष्य पर जर्मनी और इंडोनिशिया में भारत के पूर्व राजदूत गुरजीत सिंह, अफगानिस्तान में भारत के पूर्व राजदूत विवेक काटजू और अमेरिकी राजनीतिक शास्त्री क्रिस्टीन फेयर ने पैनल चर्चा के दौरान अफगानिस्तान के मौजूदा मुद्दों, भारत और अमेरिका की भूमिका तथा भावी रणनीति पर विचार व्यक्त किये।
कैनबेरा पायलट और वीर चक्र से सम्मानित स्क्वाड्रन लीडर पीपीएस गिल ने 1971 की भारत-पाक जंग के दौरान कराची बंदरगाह पर बमबारी रेड का अपना अनुभव साझा किया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानियों ने उनकी रेडियो फ्रीक्वेंसी को जाम कर दिया था, लेकिन रेड सफल रही। उन्होंने उस घटना को भी याद किया, जब दुश्मन के विमान ने उनका पीछा किया, लेकिन अरब सागर के ऊपर दांव-पेच दिखाते हुए वे उसे चकमा देने में कामयाब रहे।
उस वक्त पैरा ब्रिगेड में कैप्टन रहे वीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर पीके घोष ने तंगेल में ‘एयरड्रॉप’ के बारे में बताते हुए कहा कि उन्हें दुश्मन की सीमा में गुप्त अभियान चलाने को कहा गया था। दुश्मन के इलाके में घुसना, मुक्ति वाहिनी नेताओं से संपर्क करके सूचना इकट्टा करना, ‘ड्रॉप जोन्स’ चुनना और लैंडिंग के दौरान उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना उनके जिम्मे था।
2 पैरा बटालियन ने युद्धक्षेत्र में उतरने समेत अपने सभी मिशन पूरे किये। बटालियन का मुख्य उद्देश्य जमुना नदी के पूंगलि पुल पर नियंत्रण करना था, ताकि पाकिस्तान की 93वीं ब्रिगेड के वापस ढाका आने का रास्ता बंद किया जा सके।