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टैगोर ने 131 साल पहले शिमला में रची थी ‘सोने की नाव’

आज जयंती पर विशेष वुड फील्ड भवन में रहकर लिखीं थी आठ कविताएं

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यशपाल कपूर

सोलन, 6 मई

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साहित्य, कला, संस्कृति और संगीत से जुड़े व्यक्तियों के लिए पहाड़ों की रानी शिमला आकर्षण का केंद्र रही है। विभिन्न कालखंडों में अनेक लेखक, चित्रकार, संगीतकार और रंगकर्मी यहां अपने पदचिन्ह छोड़ चुके हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने भी यहां की शांत वादियों में कालजयी रचना की।

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शिमला के उपनगर बालूगंज- वॉयसराय रीगल मार्ग के साथ 19वीं शताब्दी की छज्जी दीवार पद्धति से बना भवन ‘वुड फील्ड’, रवींद्रनाथ टैगोर के शिमला आगमन की यादों को तरोताजा करता है। उनके भाई व इंडियन सिविल सर्विस के पहले भारतीय अधिकारी सत्येंद्रनाथ टैगोर ने सन 1893 में इस भवन को आठ माह के लिए किराये पर लिया था। बंगाल महिला आंदोलन की प्रमुख उनकी पत्नी ज्ञानदानंदिनी, बेटी इंदिरा (विख्यात संगीत शास्त्री) के अलावा ज्योतिंद्रनाथ टैगोर और रवींद्रनाथ टैगोर यहां उनके साथ रहे थे। सत्येंद्रनाथ टैगोर की पत्नी ने लिखा है- हमारी यहां लंबी अवकाश अवधि, राजकुमारी अमृत कौर के पिता राजा हरनाम सिंह के परिवार के साथ घनिष्ठता में व्यतीत हुई।

‘गांधी इन शिमला’ के लेखक और इतिहास के जानकार विनोद भारद्वाज से जब टैगोर के शिमला प्रवास के बारे में बात की, तो उन्होंने कई रोचक जानकारियां दीं। विनोद भारद्वाज ने बताया कि रवींद्रनाथ टैगोर ने शिमला प्रवास के दौरान ‘सोनार तरी’ (सोने की नाव) की 8 कविताएं इस भवन में रहते हुए लिखीं। इसका प्रकाशन 1894 में किया गया था। उन्होंने अपने कलाकार मित्रों अवनिंद्रनाथ टैगोर व सुरेंद्रनाथ टैगोर के साथ यहां से चित्र पहेलियों के माध्यम से पत्राचार भी किया।

वुड फील्ड भवन

गांधी ने यहीं मनाया था गुरुदेव का जन्मदिवस : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 7 मई, 1946 को शिमला में रवींद्रनाथ टैगोर का जन्मदिवस मनाया था। गांधी जी के सचिव प्यारे लाल द्वारा लिखित पुस्तक ‘शिमला डायरी’ में इसका उल्लेख है। शिमला के चैडविक हाउस के प्रांगण में आयोजित प्रार्थना सभा में मंच पर रवींद्रनाथ टैगोर का चित्र रखा गया था। गांधी जी ने टैगोर पर अाधारित भजन संध्या के उपरांत कहा था, यह प्रकाश पुंज कभी बुझ नहीं सकता। गुरुदेव का नश्वर शरीर राख बना है, लेकिन जब तक इस धरा पर सूरज चमेकगा, तब तक गुरुदेव का प्रकाश उदयमान रहेगा।

विरासत अनदेखी का शिकार शिमला के बालूगंज स्थित वुड फील्ड भवन, जहां 131 वर्ष पूर्व कविवर रवींद्रनाथ टैगोर ने कुछ दिन बिताये थे, आज वह समाज, सरकार की अनदेखी का शिकार है। वुड फील्ड अब एक निजी संपत्ति है। वुड फील्ड भवन के ऊपर से गुजरने वाली सड़क पर यहां का इतिहास दर्शाता एक सूचना पट्ट लगा है। इसे 23 अप्रैल, 1993 को तत्कालीन मुख्य सचिव एमएस मुखर्जी ने टैगोर परिवार के शिमला आगमन के 100 वर्ष पूर्ण होने पर उनकी स्मृति में लगाया था। समय व अनदेखी के कारण यह भी धूमिल पड़ गया है।

लाॅर्ड हार्डिंग्स ने दी थी राजकवि की संज्ञा कविवर रवींद्रनाथ टैगोर के साहित्य सृजन के अंग्रेज भी कायल थे। 26 मई, 1913 को शिमला के वायसरीगल लॉज में तत्कालीन वायसरॉय लार्ड हार्डिंग्स की अध्यक्षता में सीएफ एंड्रूज ने रवींद्रनाथ टैगोर के जीवन, दर्शन व साहित्य कृतियों पर एक शोधपत्र पढ़ा। वायसराॅय लार्ड हार्डिंग्स ने रवींद्रनाथ टैगोर को एशिया के एक प्रतिष्ठित राजकवि की संज्ञा दी। इसके बाद 13 नवंबर, 1913 को भारतीय साहित्य दर्शन में उत्कृष्ट कार्य के लिए गीतांजलि पर उन्हें नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।

गांधी ने यहीं मनाया था गुरुदेव का जन्मदिवस : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 7 मई, 1946 को शिमला में रवींद्रनाथ टैगोर का जन्मदिवस मनाया था। गांधी जी के सचिव प्यारे लाल द्वारा लिखित पुस्तक ‘शिमला डायरी’ में इसका उल्लेख है। शिमला के चैडविक हाउस के प्रांगण में आयोजित प्रार्थना सभा में मंच पर रवींद्रनाथ टैगोर का चित्र रखा गया था। गांधी जी ने टैगोर पर अाधारित भजन संध्या के उपरांत कहा था, यह प्रकाश पुंज कभी बुझ नहीं सकता। गुरुदेव का नश्वर शरीर राख बना है, लेकिन जब तक इस धरा पर सूरज चमेकगा, तब तक गुरुदेव का प्रकाश उदयमान रहेगा।

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