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एसवाईएल केंद्र की पंजाब, हरियाणा के मुख्यमंत्रियों से वार्ता शीघ्र

अदिति टंडन/ट्रिन्यू नयी दिल्ली, 26 जून केंद्र ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह पंजाब और हरियाणा के बीच दशकों पुराने सतलुज यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के जल बंटवारे के मुद्दे को सुलझाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है...
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अदिति टंडन/ट्रिन्यू

नयी दिल्ली, 26 जून

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केंद्र ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह पंजाब और हरियाणा के बीच दशकों पुराने सतलुज यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के जल बंटवारे के मुद्दे को सुलझाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है और उसने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों से इस मुद्दे पर

जल्द से जल्द वार्ता करने के लिये कहा है।

केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान को बैठक के लिए पत्र लिखा है और दिल्ली में मध्यस्थता वार्ता 10 जुलाई के आसपास करने की मंशा जाहिर की है। शीर्ष सूत्रों ने आज ट्रिब्यून को बताया कि केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल ने अपने पूर्ववर्ती गजेंद्र सिंह शेखावत के नेतृत्व में पिछले दौर की वार्ता विफल होने के बाद दोनों राज्यों के बीच मध्यस्थता कराने की  पहल की।

मई में सुप्रीम कोर्ट ने फिर से पंजाब और हरियाणा को मामले को सुलझाने के लिए केंद्र के साथ सहयोग करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने पहले जल शक्ति मंत्री को इस मामले में मुख्य मध्यस्थ नियुक्त किया था और उनसे कहा था कि वे केवल ‘मूक दर्शक’ बने रहने के बजाय सक्रिय भूमिका निभाएं। पाटिल ने आज ‘ट्रिब्यून’ से पुष्टि की कि विवाद को सुलझाने के प्रयास जारी हैं। पाटिल ने इस संवाददाता से कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने मामले में कुछ आदेश जारी किए हैं और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार हम एसवाईएल मुद्दे के समाधान की दिशा में आगे बढ़ेंगे।’

यह है मामला

यह मुद्दा 214 किलोमीटर लंबी एसवाईएल नहर के निर्माण से संबंधित है, जिसमें से 122 किलोमीटर पंजाब में और 92 किलोमीटर हरियाणा में बनाई जानी थी। हरियाणा ने अपना हिस्सा पूरा कर लिया, जबकि पंजाब ने 1982 में इस परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया। यह मामला 1981 का है, जब दोनों राज्यों के बीच जल बंटवारे पर समझौता हुआ था और बेहतर जल बंटवारे के लिए एसवाईएल नहर बनाने का निर्णय लिया गया था। जनवरी 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के पक्ष में फैसला सुनाया और पंजाब से समझौते की शर्तों के अनुसार नहर बनाने को कहा। लेकिन पंजाब विधानसभा ने 2004 में 1981 के समझौते को खत्म करने के लिए एक कानून पारित किया। 2004 के पंजाब के इस कानून को 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। तब से यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में अटका हुआ है। अब 13 अगस्त को अगली सुनवाई की तारीख तय है।

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