नयी दिल्ली, 28 जनवरी (एजेंसी)
सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को प्रोन्नति में आरक्षण देने के लिए कोई मानदंड तय करने से शुक्रवार को इनकार कर दिया। जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बी आर गवई की पीठ ने कहा कि राज्य सरकारें एससी/एसटी के प्रतिनिधित्व में कमी के आंकड़े एकत्र करने के लिए बाध्य हैं। पीठ ने कहा, ‘बहस के आधार पर हमने दलीलों को 6 बिंदुओं में बांटा है। एक मानदंड का है। जरनैल सिंह और नागराज मामले के आलोक में हमने कहा है कि हम कोई मानदंड निर्धारित नहीं कर सकते।’ पीठ ने कहा, ‘परिमाणात्मक आंकड़ों को एकत्रित करने के लिहाज से हमने कहा है कि राज्य इन आंकड़ोें को एकत्रित करने के लिए बाध्य हैं।’ शीर्ष अदालत ने कहा कि एससी/एसटी के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के संबंध में सूचनाओं को एकत्रित करने को पूरी सेवा या श्रेणी से जोड़कर नहीं देखा जा सकता, बल्कि इसे उन पदों की श्रेणी या ग्रेड के संदर्भ में देखा जाना चाहिए, जिन पर प्रोन्नति मांगी गयी है। पीठ ने कहा, ‘यदि एससी/एसटी के प्रतिनिधित्व से संबंधित आंकड़े पूरी सेवा के संदर्भ में होते हैं तो पदोन्नति वाले पदों के संबंध में परिमाणात्मक आंकड़ों को एकत्रित करने की इकाई, जो कैडर होनी चाहिए, निरर्थक हो जाएगी।’
सही अनुपात में प्रतिनिधित्व के संदर्भ में शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने इस पहलू को नहीं देखा है और संबंधित कारकों को ध्यान में रखते हुए पदोन्नति में एससी/एसटी के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का पता लगाने का काम राज्यों पर छोड़ दिया है। न्यायालय ने 26 अक्तूबर, 2021 को अपना फैसला सुरक्षित रखा था।
आधार तय करने को कहा था केंद्र ने
इससे पहले, केंद्र ने पीठ से कहा था कि सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को पदोन्नति में आरक्षण लागू करने के लिए केंद्र सरकार तथा राज्यों के लिहाज से एक निश्चित और िनर्धारित आधार तैयार किया जाए।