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Supreme court : धार्मिक स्थल संबंधी केसों की सुनवाई, आदेशों पर सुप्रीम रोक

1991 में बने संबंधित कानून का मामला, केंद्र से चार सप्ताह में मांगा जवाब
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नयी दिल्ली, 12 दिसंबर (एजेंसी)

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सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को अगले आदेश तक देश की अदालतों को धार्मिक स्थलों पर विचार करने और लंबित मामलों में कोई आदेश पारित करने से रोक दिया।

प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ के इस निर्देश से विभिन्न हिंदू पक्षों द्वारा दायर लगभग 18 मुकदमों में कार्यवाही पर रोक लग गई है। इन मुकदमों में वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद समेत 10 मस्जिदों की मूल धार्मिक प्रकृति का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण का अनुरोध किया गया है। विशेष पीठ छह याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। न्यायालय ने कहा कि केंद्र के जवाब के बिना मामले पर फैसला नहीं किया जा सकता। इसने सरकार से चार सप्ताह के भीतर याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने को कहा। सुनवाई के दौरान पीठ ने पूछा, ‘अभी कितने मुकदमे लंबित हैं?’ इस पर एक वकील ने बताया कि देशभर की कई अदालतों में 10 मस्जिदों से संबंधित कुल 18 मुकदमे लंबित हैं। न्यायालय ने कार्यवाही में हस्तक्षेप करने के अनुरोध वाली मुस्लिम निकायों समेत विभिन्न पक्षों की याचिकाओं को स्वीकार कर लिया। शीर्ष अदालत में लगभग छह याचिकाएं विचाराधीन हैं, जिनमें से एक मुख्य याचिका में अधिनियम की धारा 2, 3 और 4 को रद्द करने का अनुरोध किया गया है। याचिका में दिए गए तर्कों में से एक तर्क यह है कि ये प्रावधान किसी व्यक्ति या धार्मिक समूह के पूजा स्थल पर पुन: दावा करने के न्यायिक समाधान के अधिकार को छीन लेते हैं।

यह है पुराना कानून

संबंधित कानून के अनुसार, 15 अगस्त, 1947 को विद्यमान उपासना स्थलों का धार्मिक स्वरूप वैसा ही बना रहेगा, जैसा वह उस दिन था। यह किसी धार्मिक स्थल पर फिर से दावा करने या उसके स्वरूप में बदलाव के लिए वाद दायर करने पर रोक लगाता है। अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद से संबंधित विवाद को हालांकि इसके दायरे से बाहर रखा गया था।

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