State Bill : राज्य विधेयक पर निर्णय लेने की समयसीमा को लेकर राष्ट्रपति के संदर्भ पर केंद्र, राज्यों से जवाब तलब
विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति द्वारा निर्णय लेने के लिए समयसीमा तय की जा सकती है या नहीं, इस संबंध में राष्ट्रपति द्वारा दिए जाने वाले संदर्भ पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र और राज्यों से जवाब मांगा। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अगले मंगलवार तक केंद्र और राज्यों से जवाब मांगा है।
पीठ ने कहा कि यह मुद्दा केवल एक राज्य का नहीं, बल्कि पूरे देश का है। पीठ ने कहा कि वह 29 जुलाई को सुनवाई का कार्यक्रम तय करेगी और अगस्त के मध्य तक सुनवाई शुरू करने की योजना है। मई में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अनुच्छेद 143(1) के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग किया और आठ अप्रैल के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर न्यायालय से 14 महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे। सुप्रीम कोर्ट के आठ अप्रैल के फैसले में राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई करने के संदर्भ में समयसीमा तय की गई थी। संविधान का अनुच्छेद 143 (1) राष्ट्रपति की सुप्रीम कोर्ट से परामर्श करने की शक्ति से संबंधित है।
अनुच्छेद के अनुसार, ‘अगर किसी भी समय राष्ट्रपति को ऐसा प्रतीत हो कि विधि या तथ्य का कोई प्रश्न उत्पन्न हुआ है या उत्पन्न होने की संभावना है जो ऐसी प्रकृति और ऐसे सार्वजनिक महत्व का है कि उस पर सुप्रीम कोर्ट की राय प्राप्त करना समीचीन है, तो राष्ट्रपति उस प्रश्न को विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट भेज सकते हैं और न्यायालय ऐसी सुनवाई के बाद जैसा वह उचित समझे, राष्ट्रपति को उस पर अपनी राय से अवगत करा सकता है''।
आठ अप्रैल का निर्णय तमिलनाडु सरकार द्वारा प्रश्नांकित विधेयकों पर निर्णय के सदंर्भ में राज्यपाल की शक्तियों से संबंधित एक मामले में पारित किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार यह निर्धारित किया कि राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ रखे गए विधेयकों पर ऐसा संदर्भ प्राप्त होने की तिथि से तीन महीने के भीतर निर्णय लिया जाना चाहिए। पांच पृष्ठों के संदर्भ में राष्ट्रपति मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से प्रश्न पूछे और राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों पर निर्णय लेने में अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपालों एवं राष्ट्रपति की शक्तियों के संबंध में उसकी राय जानने का प्रयास किया।