Sonam Khan: सोनम खान का 35 साल बाद बड़ा खुलासा, बताया 15 की उम्र में क्यों छिपकर जाती थीं रेड-लाइट एरिया
चंडीगढ़, 2 जून (वेब डेस्क)
Sonam Khan: बॉलीवुड की चर्चित अभिनेत्री सोनम खान ने अपने करियर के 35 साल बाद एक ऐसा खुलासा किया है, जिसने उनके चाहने वालों को चौंका दिया है। 80 और 90 के दशक में अपने ग्लैमरस किरदारों के लिए मशहूर रहीं सोनम ने बताया कि वह एक समय छिपकर रेड-लाइट एरिया जाया करती थीं, ताकि अपने किरदार को और मजबूती से निभा सके।
सोनम ने यह खुलासा सोशल मीडिया पर 1989 में आई अपनी फिल्म ‘मिट्टी और सोना’ को याद करते हुए किया। इस फिल्म में उन्होंने एक कॉलेज गर्ल और तवायफ दोनों किरदार निभाए थे। उन्होंने लिखा, “‘मिट्टी और सोना’ मेरे दिल के सबसे करीब फिल्म है… इसमें एक कॉलेज गर्ल और एक तवायफ का रोल निभाया था। मैं यह किरदार निभाकर साबित करना चाहती थी कि मैं सिर्फ ग्लैमरस नहीं, बल्कि सशक्त अभिनय भी कर सकती हूं।”
किरदार की गहराई को समझने के लिए सोनम छिपकर रेड-लाइट एरिया गईं, ताकि वहां की लड़कियों के हावभाव, बातचीत और जीवन को समझ सकें। उन्होंने कहा, “मैंने वहां की कुछ लड़कियों से बात की। उनसे मिलकर मुझे दुख, डर और असुरक्षा की भावना महसूस हुई। ये अनुभव मेरे लिए बेहद भावुक करने वाले थे।”
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सोनम ने लिखा...
“मिट्टी और सोना” मेरे दिल के सबसे करीब फिल्म है…
इस फिल्म में मैंने एक कॉलेज गर्ल और एक सेक्स वर्कर की भूमिका निभाई थी।
हाँ, यह किरदार निभाना वाकई चुनौतीपूर्ण था।
मुझे एक कॉलेज छात्रा और साथ ही साथ एक वेश्यावृत्ति में शामिल लड़की की अदाओं और तौर-तरीकों को आत्मसात करना पड़ा।
इस फिल्म के ज़रिए मुझे खुद को साबित करना था—but कैसे, यह मुझे भी नहीं पता था।
लोग अक्सर मुझे “सेक्सी सोनम” के रूप में जानते थे, जो बिना किसी झिझक के बिकिनी पहनती थी।
इस फिल्म ने मुझे अपने छोटे लेकिन यादगार करियर (जो लगभग 4 साल का था) में यह साबित करने का मौका दिया कि मैं सिर्फ ग्लैमरस नहीं, बल्कि एक अच्छी अभिनेत्री भी हूं।
मैंने बुर्का पहनकर रेड लाइट एरिया का दौरा किया, ताकि कोई मुझे पहचान न सके।
मैंने वहां की लड़कियों के हावभाव देखे और मेरे मन में बहुत सारी मिली-जुली भावनाएं उमड़ पड़ीं।
मैंने वहां कुछ लड़कियों से बात भी की।
उनसे मिलकर मुझे गहरा दुख, डर और उनके प्रति एक संरक्षण की भावना महसूस हुई।
शूटिंग के अनुभव भी बेहद खास रहे
मुझे याद है कि एक सीन करना था जिसमें मुझे स्किन कलर की शॉर्ट, स्ट्रैपलेस ड्रेस पहननी थी, जो कैमरे के एंगल और लेंस के लिए जरूरी था।
यह ड्रेस ऐसी थी कि ऐसा लगता मानो मैंने कुछ पहना ही नहीं हो।
शुरू में तो मैं तैयार थी, लेकिन अचानक ही मैं फूट-फूट कर रोने लगी और सीन करने से मना कर दिया।
उस समय मेरी उम्र सिर्फ 15-16 साल थी।
मेकअप रूम में मुझे बहुत समझाया गया, फिर मैं सेट पर गई और उस सीन को किया।
मुझे उन लड़कियों की याद आई, जिन्हें मैंने कुछ वक्त पहले रेड-लाइट एरिया में देखा था—उन्हीं से हिम्मत ली।
मेरे इस फिल्म का सबसे पसंदीदा गीत है:
“ज़िंदगी में पहली पहली बार”, जिसे स्वर कोकिला लता मंगेशकर जी ने गाया था।
फिल्म का अंतिम गीत, जो आशा भोसले जी ने खूबसूरती से गाया था, वो मैंने बिना मेकअप के शूट किया।
फिल्म के क्लाइमैक्स में मेरा डेथ सीन भी बिना मेकअप के शूट हुआ था।
शूट पूरा होने के बाद मुझे बहुत घुटन सी महसूस हुई।
जब मैं घर लौटी, तो खूब रोई।
मेरी मां ने मुझे हैरानी से देखा, क्योंकि उन्होंने मुझे पहले कभी इस तरह रोते नहीं देखा था।
फिल्म में अपने लुक को मैंने खुद डिज़ाइन किया था,
क्योंकि मैं तब मैडोना की बहुत बड़ी फैन थी—और आज भी हूं।
मेरे सह-कलाकार Chunky Pandey और प्राण साहब ने शूटिंग के दौरान बेहद सहयोग दिया।
मैं हमेशा पहलाज निहलानी सर की आभारी रहूंगी जिन्होंने मुझे एक सशक्त किरदार निभाने का मौका दिया।
कभी-कभी किस्मत के एक मोड़ पर
एक कम कपड़े पहनने वाली “सेक्स सायरन” से
मैंने यह साबित किया कि
मैं अभिनय भी कर सकती हूं।