बेंगलुरू में Digital Arrest जाल में फंसी सॉफ्टवेयर इंजीनियर, 187 ट्रांजेक्शन में गंवाए 31.83 करोड़
Digital Arrest: बेंगलुरु की 57 वर्षीय एक महिला “डिजिटल अरेस्ट” की शिकार होकर लगभग 31.83 करोड़ रुपये गंवा बैठी। धोखेबाजों ने खुद को सीबीआई अधिकारी बताकर स्काइप पर छह महीने तक उस पर नजर रखी, उसे डराया-धमकाया और 187 बैंक ट्रांजेक्शन कराने को मजबूर किया।
घोटाले की शुरुआत एक फर्जी कॉल से हुई, जिसमें उसके नाम पर ड्रग्स और दस्तावेज मिलने का झांसा दिया गया। महिला से कथित जमानत, टैक्स और शुल्क के नाम पर करोड़ों रुपये वसूले गए। अंत में कोई रिफंड नहीं मिला और मार्च 2025 में ठग संपर्क तोड़कर गायब हो गए।
इस संबंध में मामला दर्ज कर जांच की जा रही है। धोखेबाजों ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) अधिकारी बनकर स्काइप के माध्यम से महिला पर लगातार निगरानी रखकर उसे "डिजिटल अरेस्ट" की स्थिति में रखा और उसकी दहशत का फायदा उठाकर उससे सारी वित्तीय जानकारी हासिल की तथा 187 बैंक अंतरण करने के लिए दबाव डाला।
शहर के इंदिरानगर की सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने अपनी शिकायत में कहा कि अंत में 'क्लीयरेंस लेटर' मिलने तक धोखबाजों ने उसे छह महीने से अधिक समय तक ‘डिजिटल अरेस्ट' के धोखे में रखा। इसकी शुरुआत 15 सितंबर, 2024 को एक व्यक्ति के फोन से हुई, जिसने डीएचएल अंधेरी से होने का दावा करते हुए आरोप लगाया कि उसके नाम से बुक किए गए पार्सल में क्रेडिट कार्ड, पासपोर्ट और ‘एमडीएमए' है और उसकी पहचान का दुरुपयोग किया गया है।
मेथिलीन-डाइऑक्सीमेथाम्फेटामीन (एमएमडीए) एक मादक पदार्थ होता है। इससे पहले कि महिला कोई जवाब दे पाती, कॉल खुद को सीबीआई अधिकारी बताने वाले व्यक्तियों के पास स्थानांतरित कर दी गई, जिन्होंने उसे धमकाया और दावा किया कि "सारे सबूत आपके खिलाफ हैं"।
महिला को दो स्काइप आईडी बनाने और वीडियो पर बने रहने का निर्देश दिया गया था। मोहित हांडा नामक एक व्यक्ति ने दो दिन तक उस पर नजर रखी, उसके बाद राहुल यादव ने एक हफ्ते तक उस पर नजर रखी। एक और जालसाज प्रदीप सिंह ने खुद को सीबीआई का वरिष्ठ अधिकारी बताया और उस पर अपनी बेगुनाही साबित करने का दबाव डाला।
उमारानी ने 24 सितंबर से 22 अक्टूबर तक अपने वित्तीय विवरण साझा किए और बड़ी रकम हस्तांतरित की। उन्होंने 24 अक्टूबर और तीन नवंबर के बीच दो करोड़ रुपये की कथित जमानत राशि जमा की, जिसके बाद "कर" के लिए और भुगतान किया गया।
पीड़िता को कथित तौर पर एक दिसंबर को ‘क्लियरेंस लेटर' मिला लेकिन इतने दिनों तक तनाव झेलने के बाद वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गई जिससे उबरने और ठीक होने में एक महीने का समय लगा।
दिसंबर के बाद घोटालेबाजों ने प्रोसेसिंग शुल्क की मांग की और बार-बार रिफंड को फरवरी और फिर मार्च तक टालते रहे। 26 मार्च, 2025 को सभी तरह का संवाद बंद हो गया। पीड़िता ने कहा, "187 लेनदेन के माध्यम से मुझसे लगभग 31.83 करोड़ रुपये की राशि वसूली गई, जो मैंने ही जमा की थी।"
