क्या सभ्य समाज को इस तरह की प्रैक्टिस की इजाज़त देनी चाहिए ?
सुप्रीम कोर्ट ने ‘तलाक-ए-हसन’ पर उठाया सवाल, कहा
तलाक-ए-बिद्दत (तुरंत तीन तलाक) को गैर-संवैधानिक घोषित करने के आठ साल बाद, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तलाक-ए-हसन की इस्लामी प्रैक्टिस पर सवाल उठाया। यह ट्रिपल तलाक का एक और रूप है जिसमें एक मुस्लिम आदमी महीने में एक बार लगातार तीन महीने तक ‘तलाक’ शब्द बोलकर अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है।
चीफ जस्टिस -डेजिग्नेटेड जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने पूछा- ‘यह किस तरह की चीज़ है? आप 2025 में इसे कैसे बढ़ावा दे रहे हैं? हम जो भी सबसे अच्छी धार्मिक प्रैक्टिस करते हैं… क्या आप इसकी इजाज़त देते हैं? क्या इसी तरह एक महिला की इज्ज़त बनाए रखी जा सकती है? क्या एक सभ्य समाज को इस तरह की प्रैक्टिस की इजाज़त देनी चाहिए?
बेंच– जिसमें जस्टिस उज्जल भुयान और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह भी शामिल थे – ने तलाक-ए-हसन के खिलाफ याचिका को संविधानिक पीठ को भेजने का इशारा किया। बेंच ने कहा, ‘एक बार जब आप (याचिकाकर्ता के वकील) हमें एक छोटा नोट दे देंगे, तो हम इस पर विचार करेंगे कि इसे पांच जजों की बेंच को भेजा जाए या नहीं... हमें मोटे तौर पर वे सवाल बताएं जो उठ सकते हैं। फिर हम देखेंगे कि वे कैसे ज़्यादातर कानूनी हैं जिन्हें कोर्ट को सुलझाना चाहिए।’ मामले की अगली सुनवाई 26 नवंबर को तय की। जस्टिस कांत ने कहा, ‘यह संविधान दिवस है और इसलिए हमें कुछ करना चाहिए।’ जस्टिस कांत ने कहा, ‘पूरा समाज इसमें शामिल है। कुछ सुधार के उपाय करने होंगे। अगर बहुत ज़्यादा भेदभाव वाली प्रथाएं हैं, तो कोर्ट को दखल देना होगा।’
यह बात उन्होंने पत्रकार बेनज़ीर हीना की 2022 में दायर एक याचिका के बारे में कही, जिसमें तलाक-ए-हसन की प्रथा को गैर-कानूनी, मनमाना और संविधान की धारा 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करने वाला बताते हुए इसे गैर-कानूनी घोषित करने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता में से एक – जिसके पति ने कथित तौर पर उसके परिवार के दहेज देने से मना करने पर एक वकील के ज़रिए तलाक-ए-हसन नोटिस भेजकर उसे तलाक दे दिया था – ने जेंडर और धर्म न्यूट्रल प्रोसेस और तलाक के आधार पर गाइडलाइन भी मांगी हैं। उसने इसे ‘एकतरफ़ा एक्स्ट्रा-ज्यूडिशियल तलाक’ बताया।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा- ‘आज हमारे सामने एक जर्नलिस्ट है। दूर-दराज के इलाकों में रहने वाली उन अनसुनी आवाज़ों की हालत क्या होगी?’

