Sholay @50 : जय-वीरू की दोस्ती से गब्बर के खौफ तक... आज भी बरकरार है ‘शोले’ का जलवा
Sholay @50 : जब संवाद, पात्र और दृश्य लोकप्रिय लोककथाओं का हिस्सा बन जाते हैं, राष्ट्रीय स्मृति के ताने-बाने में समा जाते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहते हैं, तब सिनेमा का जादू महसूस होता है। "शोले" ऐसी ही फिल्म है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपने फिल्म देखी है या नहीं। इस फिल्म को रिलीज हुए 50 साल हो गए हैं। यह एक ‘कल्ट क्लासिक' बन चुकी है, जिसे आज भी लोग देखते हैं।
इसका जिक्र लगभग हर मौके पर किया जाता है। और फिर, बैठक में देर से आने वाला कोई व्यक्ति जब कहता है, "इतना सन्नाटा क्यों है भाई" तो सभी मुस्कुरा उठते हैं। जुड़ाव तुरंत हो जाता है। इस फिल्म से सभी अच्छी तरह वाकिफ हैं। रमेश सिप्पी की यह उत्कृष्ट कृति, जिसमें हास्य, रोमांस, मारधाड़ और त्रासदी का मिश्रण था। 15 अगस्त, 1975 को रिलीज हुई थी और इसकी अवधि तीन घंटे से अधिक थी।
शुरुआत में इसे दर्शकों से जबरदस्त प्रतिक्रिया नहीं मिली, लेकिन बाद के हफ्तों में इसका जादू छा गया। यही वह समय था जब 70 मिमी के परदे पर इतिहास रचा जा रहा था। संजीव कुमार, धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन, हेमामालिनी, जया बच्चन और ‘गब्बर सिंह' का किरदार निभाने वाले अमजद खान समेत सभी कलाकारों ने प्रभावशाली प्रदर्शन किया। ठाकुर, जय, वीरू, बसंती और गब्बर ही ऐसे कलाकार नहीं हैं जो समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं। एक-दो दृश्यों में मौजूद कई चरित्र कलाकारों को भी याद किया जाता है।
कुछ को उनके संवादों के लिए याद किया जाता है। ए.के. हंगल द्वारा निभाया गया वृद्ध व अंधा पिता, जो इस बात से अनजान है कि उसका बेटा मारा गया है। वह पूछ रहा है कि लोग इतने शांत क्यों हैं या मैकमोहन, जो सांबा के रूप में प्रसिद्ध हुए और बस एक संवाद "पूरे 50 हजार" बोला। मौसी, सूरमा भोपाली, 'अंग्रेजों के जमाने के जेलर', कालिया याद हैं। ये फिल्म के कई किरदारों में से कुछ हैं, जो दर्शकों को हंसी से लेकर, डर तक महसूस कराते हैं। हर किरदार अपने आप में नायाब है।