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दूसरा अमृत स्नान आज 17 शृंगारों के साथ नागा संन्यासी लगाएंगे पहली डुबकी

महाकुंभ : मौनी अमावस्या पर 10 करोड़ श्रद्धालुओं के जुटने की उम्मीद
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प्रयागराज में मंगलवार को महाकुंभ में त्रिवेणी संगम पर डुबकी लगाने के लिए उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब। - प्रेट्र
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हरि मंगल

महाकुंभनगर, 28 जनवरी

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विश्व के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन प्रयागराज महाकुंभ के मुख्य स्नान पर्व मौनी अमावस्या पर स्नान के लिए मंगलवार से ही करोड़ों लोग पहुंच गए। बुधवार को दूसरे अमृत स्नान के लिए त्रिवेणी संगम पर 10 करोड़ श्रद्धालुओं के डुबकी लगाने की संभावना है। पिछले 17 दिनों में 15 करोड़ से अधिक लोग गंगा और संगम में स्नान कर चुके हैं। इस बीच, मेला प्रशासन ने श्रद्धालुओं के लिए एडवाइजरी जारी की है।

दूसरे अमृत स्नान से पहले यहां नागा संन्यासी डुबकी लगाएंगे। इससे पहले ईष्ट देव की पूजा एवं इनका शृंगार होता है। बुधवार को ज्यादातर नागा 17 कठिन शृंगार से सजे होंगे। इनमें भस्मी, पंचकेश, तिलक, चंदन, गुथी हुई जटायें, काजल, चिमटा/डमरू या कमंडल, रुद्राक्ष की माला, कुंडल, रोली का लेप, हाथ में कड़ा, अंगूठी, बांह पर माला या रुद्राक्ष, पैर में चांदी या लोहे का कड़ा, कमर पर रुद्राक्ष या फूल की माला, इत्र या चंदन का लेप, लंगोटी या कोपीन शामिल बताये जाते हैं। ये संन्यासी गंगा को अपनी मां के समान सम्मान और आदर भाव देते हैं। अमृत स्नान के पहले यह खुद को स्वच्छ करके ही गंगा में अमृत स्नान को जाते है ताकि मां का आंचल गंदा न हो।

शैव सम्प्रदाय के सात अखाड़ों में से छः अखाड़ों- जूना, अटल, आवाहन, निर्वाणी, निरंजनी और आनंद में अमृत स्नान के दिन भोर में दो बजे ही पुकार होती है। सभी लोग स्नान करके धर्म ध्वजा के नीचे एकत्र होते हैं।

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविन्द्र पुरी कहते हैं कि शोध भी साबित करते हैं कि भस्म जब गंगा जल में मिलती है तो उसे और स्वच्छ बनाती है। जूना अखाड़े की महंत देव्या गिरि कहती हैं कि नागा संन्यासियों का शृंगार महिलाओं के मुकाबले ज्यादा कठिन है। इस बीच, परामर्श जारी करते हुए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (कुंभ) राजेश द्विवेदी एवं पुलिस उप महानिरीक्षक वैभव कृष्ण ने कहा, ‘श्रद्धालु कहीं एक साथ एक स्थान पर न रुकें और किसी भी स्थिति में आने और जाने वाले श्रद्धालु आमने-सामने ना आएं। धक्का-मुक्की से बचें। अफवाहों पर ध्यान न दें। सोशल मीडिया पर फैलाए गए किसी भी भ्रम को सच न मानें।’

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