ज्ञान ठाकुर/निस
केरल से लौटकर
दुनिया में चावल और मक्के के बाद मनुष्य के आहार में साबूदाना कार्बोहाइड्रेट का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत है। मूल रूप से कसावा अथवा कैपियोका के नाम से जाना जाने वाला साबूदाने का भारत जैसे देश में बड़ा धार्मिक महत्व है। उपवास अथवा इसी तरह के अन्य धार्मिक आयोजनों में साबूदाने की खीर अक्सर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। लेकिन बहुत कम लोगों को मालूम है कि साबूदाने के पौधे के पत्ते से न केवल बिजली बन सकती है बल्कि इससे रसोई गैस, कीटनाशक और खाद भी बनाई जा सकती है। सीटीसीआरआई तिरुअनंतपुरम के वैज्ञानिक डाॅ. सी.ए. जयप्रकाश और उनकी टीम ने साबूदाने के पौधे के पत्तों से ये चारों चीजें बना डाली है। इन वैज्ञानिकों को अब अपनी इस खोज को बड़े पैमाने पर ले जाने और खासकर ऊर्जा संकट जैसे मौजूदा समय में देशवासियों के लिए एक उम्मीद की किरण दिखाने का इंतजार है।
इन दिनों देश में ऊर्जा संकट किसी से नहीं छिपा है और खासकर मैदानी इलाकों में भीषण गर्मी के बीच लोगों को लम्बे-लम्बे बिजली कट से जूझना पड़ रहा है। ऐसे में सीटीसीआरआई के इन वैज्ञानिकों ने लोगों को उम्मीद की एक लौ जलाई है। ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ अभियान के तहत केरल भ्रमण के दौरान संस्थान के इन वैज्ञानिकों ने हिमाचल के पत्रकारों से बातचीत में इस खोज को लेकर अपने अनुभव साझा किए। इस खोज को मूर्त रूप देने वाले वैज्ञानिक डा. सी.ए. जयप्रकाश के अनुसार य खोज स्वच्छ ऊर्जा स्रोत के लिए देश की पहल को नई गति प्रदान कर सकती है। उनकी इस खोज में परवाणु ऊर्जा विभाग भी सहयोगी बना है और शोध पर आने वाले खर्च का वहन कर रहा है।
वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध के अनुसार प्रति हेक्टेयर साबूदाने की फसल में लगभग 5 टन पत्ते और टहनियां बर्बाद हो जाती है। इन पत्तों और टहनियों को प्रयोग करके ही उन्होंने एक साथ बिजली, रसोई गैस, कीटनाशक और खाद बनाई है। वैज्ञानिकों की इस खोज को काफी सराहना भी मिली है। हालांकि इन वैज्ञानिकों द्वारा साबूदाने के पत्तों से तैयार किए गए जैव कीटनाशकों को बाजार में पहले से ही मौजूद कीटनाशक लॉबी फिलहाल आगे नहीं बढ़ने दे रही है।