बलवंत गर्ग /टि्रन्यू
फरीदकोट, 18 अप्रैल
दसवीं, ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा की एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों की पायरेटेड (नकली) प्रतियां ऐसे समय में बाजार में बेची जा रही हैं, जब नए शैक्षणिक वर्ष के लिए विशेष कक्षाएं शुरू हो गई हैं। कोई पुस्तक विक्रेता किसी भी एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तक को छपी कीमत से अधिक पर नहीं बेच सकता, लेकिन यहां क्षेत्र के अधिकांश पुस्तक विक्रेताओं के पास उपलब्ध पायरेटेड पुस्तकों को सिलाई या जिल्द लगा कर 30 से 50 रुपए अतिरिक्त लागत वसूली जाती है।
एनसीईआरटी के अधिकारियों के अनुसार कोई भी छात्र या खरीदार बिना किसी अतिरिक्त बाध्यता के पाठ्यपुस्तक को मूल रूप में मांग सकता है और उसमें छपी कीमत का भुगतान कर सकता है। कुछ समय पहले, 16 वर्षीय, कक्षा 10 वीं के एक छात्र ने एक पायरेटेड पाठ्यपुस्तक को लेकर जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम, फरीदकोट से संपर्क किया था, क्योंकि किताब गलतियों और अशुद्धियों से भरी थी। इस शिकायत के जवाब में, एनसीईआरटी के अधिकारियों ने दावा किया कि परिषद् की पुस्तकों में किसी भी त्रुटि या गलत मुद्रण की कोई गुंजाइश नहीं है। इसने दावा किया कि छात्र को बेची गई किताब एक पायरेटेड कॉपी थी। अधिकारियों ने फोरम के सामने अपने जवाब में कहा कि किसी पुस्तक के लगातार आठ पृष्ठों की जांच करने की आवश्यकता रहती है, और हम कम से कम दो पृष्ठों पर वॉटरमार्क पाएंगे। एनसीईआरटी की कोई भी पाठ्यपुस्तक खरीदने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि किताब के कई पन्नों पर एनसीईआरटी के लोगो का वॉटरमार्क है।
एनसीईआरटी ने यह भी कहा कि छात्रों को पुस्तक का बिल लेना चाहिए। अपने आदेश में, पुस्तक विक्रेता पर 5000 रुपये का जुर्माना लगाते हुए, फोरम ने कहा कि दुकानदारों में बिल जारी न करना आम बात है। इस मामले में छात्र को बेची गई पुस्तक में कीमत 180 रुपये छपी थी लेकिन पुस्तक विक्रेता ने 200 रुपये का शुल्क लेते हुए कहा कि इसे एक जिल्द के साथ बेचा गया था।
शिक्षा विभाग के हाथ खाली
इस क्षेत्र में खुलेआम एनसीईआरटी की पायरेटेड किताबें बिक रही हैं, जिला शिक्षा विभाग ने पिछले एक दशक में ऐसी एक भी किताब का पता नहीं लगाया है। फरीदकोट के जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) शिवराज कपूर ने कहा कि राज्य सरकार के निर्देश पर 5 सदस्यीय टीम का गठन किया गया था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पुस्तक विक्रेताओं द्वारा पुस्तकों की बिक्री में अधिक शुल्क नहीं लिया जाए। हालांकि, इस निरीक्षण दल के कार्य में पुस्तकों की प्रामाणिकता की जांच करने जैसा कोई ‘कार्य’ नहीं है। उन्होंने कहा कि कल से हम अपनी टीम के सदस्यों से किताबों की प्रामाणिकता की भी जांच करने को कहेंगे।
असली किताबें मिलती ही नहीं
पाइरेटेड एनसीईआरटी पुस्तकों की बिक्री एक रैकेट है और सूत्रों ने कहा कि अधिकांश पुस्तक विक्रेता उच्च लाभ के कारण इस काम में लिप्त हैं। इनमें से अधिकांश पुस्तकें लुधियाना और जालंधर छपती हैं। असली किताबों की बिक्री पर जहां एक विक्रेता को करीब 5 फीसदी कमीशन मिलता है, वहीं पायरेटेड टेक्स्ट बुक बेचने पर यह कमीशन 20 से 30 फीसदी ज्यादा होता है। एनसीईआरटी छात्रों को किताब खरीदने से पहले वाटर मार्क की जांच करने पर जोर देता है, लेकिन छात्रों के साथ समस्या यह है कि असली एनसीईआरटी किताबें शायद ही कभी उपलब्ध होती हैं। क्षेत्र में एनसीईआरटी की पुस्तकों के प्रकाशन के लिए कोई अधिकृत प्रिंटिंग प्रेस नहीं है लेकिन प्रकाशन और बिक्री का अवैध कारोबार एक दशक से अधिक समय से जारी है। फरीदकोट के एक निजी स्कूल में विज्ञान के शिक्षक ने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा कि चूंकि एनसीईआरटी पुस्तकों की पीडीएफ फाइल परिषद की आधिकारिक साइट पर उपलब्ध है, इसलिए मैंने अपने छात्रों से कहा है कि वे बाजार से ‘पायरेटेड’ किताबें खरीदने के बजाय इन पीडीएफ फाइलों से प्रिंट ले लें।