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Russian oil imports: रूसी कंपनियों पर प्रतिबंध से रिलायंस को झटका, कच्चे तेल के आयात पर पड़ेगा असर

Russian oil imports: सरकारी रिफाइनरियां फिलहाल मध्यस्थ व्यापारियों के माध्यम से खरीद जारी रख सकती हैं

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सांकेतिक फाइल फोटो। रॉयटर्स
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Russian oil imports: रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों से रिलायंस इंडस्ट्रीज के रूस से कच्चे तेल के आयात पर असर पड़ने के आसार हैं जबकि सरकारी रिफाइनरियां फिलहाल मध्यस्थ व्यापारियों के माध्यम से खरीद जारी रख सकती हैं।

उद्योग जगत के सूत्रों ने बताया कि सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां अनुपालन जोखिमों का आकलन कर रही हैं, लेकिन रूसी कच्चे तेल के प्रवाह को तुरंत रोकने की संभावना नहीं है क्योंकि वे अपनी आवश्यकता का सभी तेल व्यापारियों से खरीदते हैं जिनमें से अधिकतर यूरोपीय व्यापारी हैं (जो प्रतिबंधों के दायरे से बाहर हैं)।

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यह भी पढ़ें: US राष्ट्रपति ट्रंप का दावा- भारत इस साल के अंत तक रूस से तेल खरीदना लगभग बंद कर देगा

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उन्होंने कहा कि उद्योगपति मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड को अपने आयात को फिर से संतुलित करना पड़ सकता है क्योंकि यह सीधे रूस की ‘रोसनेफ्ट' से कच्चा तेल खरीदती है।

रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड भारत में रूसी कच्चे तेल की सबसे बड़ी खरीदार है और रूस से देश के प्रतिदिन 17 लाख बैरल आयात का लगभग आधा हिस्सा खरीदती है। रिलायंस ने दिसंबर 2024 में रूस की कंपनी रोसनेफ्ट (जो अब प्रतिबंधित है) के साथ 25 वर्ष तक प्रतिदिन 5,00,000 बैरल रूसी तेल आयात करने के लिए एक सावधिक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। यह बिचौलियों से भी तेल खरीदता है।

कंपनी को इस पर प्रतिक्रिया हासिल करने के लिए ईमेल किया गया लेकिन उससे खबर लिखने तक कोई जवाब नहीं मिला। अमेरिकी वित्त मंत्रालय के विदेशी संपत्ति नियंत्रण कार्यालय (ओएफएसी) ने ‘ओपन ज्वाइंट स्टॉक' कंपनी रोसनेफ्ट ऑयल कंपनी और लुकोइल ओएओ पर और प्रतिबंध लगा दिए हैं। ये रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियां हैं।

अमेरिकी प्रशासन ने इन कंपनियों पर यूक्रेन पर रूस के हमने को वित्तपोषित करने का आरोप लगाया है। दोनों कंपनियां मिलकर प्रतिदिन 31 लाख बैरल तेल का निर्यात करती हैं। केवल रोसनेफ्ट वैश्विक तेल उत्पादन का छह प्रतिशत और रूस के कुल तेल उत्पादन का लगभग आधा हिस्सा निर्यात करती है। रूस के 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से भारत, रूसी कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है जिसने पश्चिमी खरीदारों के हटने के बाद मिली भारी छूट का लाभ उठाया है।

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