Tribune
PT
Subscribe To Print Edition About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

RIP Dharmendra : जब दिलीप कुमार से मिलने के लिए बेडरूम तक पहुंच गए थे धर्मेंद्र, फैन से ऐसे बने थे सुपरस्टार

जब दिलीप कुमार के घर में घुसे धर्मेंद्र और पसंदीदा कलाकार की नजर पड़ते ही उल्टे पांव वापस भागना पड़ा

  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

RIP Dharmendra : धर्मेंद्र के फिल्मी दुनिया में लोकप्रिय अभिनेता के रूप में उभरने से पहले उस वक्त का दिलचस्प वाक्या सामने आया, जब धर्मेंद्र बंबई गए और हिम्मत जुटाकर अपने पसंदीदा अभिनेता दिलीप कुमार के घर के अंदर घुसकर उनके बेडरूम तक पहुंचे।

जब अभिनेता ने अपने घर में एक अजनबी को पाया तो धर्मेंद्र भाग खड़े हुए। वर्ष 1952 के किसी समय के इस दिलचस्प किस्से का जिक्र खुद धर्मेंद्र ने दिलीप कुमार की आत्मकथा ‘द सब्सटेंस एंड द शैडो' के ‘स्मरण' खंड में विस्तार से किया है। धर्मेंद्र ने कहा था कि 1952 में जब मैं कॉलेज के दूसरे वर्ष में था, तब मैं पंजाब के छोटे से शहर लुधियाना से बंबई आया। तब हम लुधियाना में रहते थे। उस समय अभिनेता बनने की मेरी कोई योजना नहीं थी, लेकिन मैं दिलीप कुमार से जरूर मिलना चाहता था, जिनकी फिल्म ‘शहीद' ने मेरी भावनाओं को गहराई तक छू लिया था। किसी अज्ञात कारण से मुझे लगने लगा था कि दिलीप कुमार और मैं भाई-भाई हैं।

Advertisement

उन्होंने याद करते हुए कहा था कि बंबई पहुंचने के अगले ही दिन, मैं हिम्मत करके दिलीप कुमार से मिलने बांद्रा के पाली माला इलाके में उनके घर गया। दरवाजे पर मुझे किसी ने नहीं रोका इसलिए मैं सीधे मुख्य द्वार से घर में चला गया। ऊपर बेडरूम तक जाने के लिए लकड़ी की एक सीढ़ी थी। फिर भी, मुझे किसी ने नहीं रोका। मैं सीढ़ियां चढ़कर ऊपर गया और एक कमरे के प्रवेश द्वार पर खड़ा हो गया।

Advertisement

धर्मेंद्र ने याद किया कि एक गोरा, दुबला-पतला, खूबसूरत युवक सोफे पर सो रहा था। दिलीप कुमार ने किसी की मौजूदगी का आभास किया होगा और वे अचानक चौंककर जाग गए। मैं समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूं, लेकिन मैं वहीं खड़ा रहा। वह सोफे पर बैठ गए और मुझे घूरने लगे, यह देखकर वह बिल्कुल हैरान रह गए कि एक अजनबी उनके बेडरूम के दरवाजे पर सावधानी से खड़ा उन्हें प्रशंसा भरी नजरों से देख रहा था। जहां तक मेरी बात है, मुझे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था- मेरे आदर्श दिलीप कुमार मेरे सामने थे।

कुमार ने जोर से नौकर को आवाज दी। मैं डर के मारे सीढ़ियों से नीचे भागा और घर से बाहर निकलकर पीछे मुड़कर देखने लगा कि कहीं कोई मेरा पीछा तो नहीं कर रहा। जब वह एक कैफे में पहुंचे और अंदर गए तो ठंडी लस्सी मांगी। जब मैं कैफे में बैठा अपने द्वारा उठाए गए इस कदम पर सोच रहा था, तो मुझे एहसास हुआ कि एक मशहूर अभिनेता की निजता में दखल देकर मैंने कितनी लापरवाही बरती थी। इस घटना के छह साल बाद, वह ‘यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स एंड फिल्मफेयर टैलेंट कॉन्टेस्ट' में हिस्सा लेने के लिए तत्कालीन बंबई लौटे।

धर्मेंद्र ने यह भी याद किया कि मैं अब सचमुच एक अभिनेता बनने के लिए उत्सुक था और मैंने अपने पिता को मना लिया था। मुझे विजेता घोषित किया गया और उसके बाद, मुझे ‘फिल्मफेयर' पत्रिका के कार्यालय में एक फोटोशूट के लिए आने को कहा गया। मुझे मेकअप करना नहीं आता था और फोटोग्राफर मेरे चेहरे से प्रभावित हुआ लेकिन वह थोड़ा सा मेकअप करवाना चाहता था। एक गोरी, दुबली-पतली लड़की मेकअप किट लेकर मेरे पास आई और उसने मेरे चेहरे का मेकअप करना शुरू कर दिया। फिल्मफेयर के तत्कालीन संपादक, एल.पी. राव ने मुझसे धीरे से पूछा कि क्या मैं उस लड़की को जानता हूं।

उन्होंने कहा था कि जब मैंने कहा कि मैं नहीं जानता तो उन्होंने मुझे बताया कि वह दिलीप साहब की बहन फरीदा थीं, जो ‘फेमिना' पत्रिका के साथ काम कर रही थीं। मैंने फरीदा को जाते हुए देखा और मैं उनके पीछे दौड़ा और उनसे दिलीप साहब से मिलाने का अनुरोध किया। मैंने उनसे कहा कि मुझे पूरा विश्वास है कि वह मेरे भी भाई हैं। तब फरीदा ने कहा कि अगर उनके भाई राजी होते हैं तो वह राव को सूचित कर देंगी। अगले दिन उन्हें रात 8:30 बजे उनके बंगले, 48 पाली हिल पर बुलाया गया और जब दिलीप साहब बाहर आए और उनका स्वागत किया तथा उन्हें लॉन में अपने बगल में बैठने के लिए कुर्सी दी, तो उनके लिए जैसे ‘‘समय थम सा गया।

Advertisement
×