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शेष-विशेष : कई रूपों में याद किए जाते हैं धर्मेंद्र

चरित्रों का सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव धर्मेंद्र की भूमिकाओं में साफ़ दिखाई दिया। जिसमें पवित्रता, हास्य, नैतिकता और रोमांस का अनूठा संयोजन रहा, जिसने कई पीढ़ियों को प्रभावित किया। 'सत्यकाम' भारतीय समाज में ईमानदारी की मिसाल बनी, वहीं 'शोले' और...
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चरित्रों का सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव धर्मेंद्र की भूमिकाओं में साफ़ दिखाई दिया। जिसमें पवित्रता, हास्य, नैतिकता और रोमांस का अनूठा संयोजन रहा, जिसने कई पीढ़ियों को प्रभावित किया। 'सत्यकाम' भारतीय समाज में ईमानदारी की मिसाल बनी, वहीं 'शोले' और 'चुपके चुपके' में उनका ह्यूमरस पक्ष हमेशा याद किया जाएगा। धर्मेंद्र के किरदार आज भी भारतीय सिनेमा की विरासत में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और फिल्मों के नायकत्व की पहचान को नया आयाम दिया।

हर फिल्म अभिनेता को याद करने की एक वजह होती है। अमिताभ बच्चन को यंग एंग्री मैन के रूप में जाना जाता है, ऋषि कपूर पहचान डांसिंग हीरो की थी तो राजकुमार को उनके अलग ही अंदाज के लिए है। लेकिन, धर्मेंद्र के साथ ऐसी कोई पहचान नहीं जुड़ी। 'शोले' का वीरू मस्तमौला था 'सत्यवान' में उनका किरदार ईमानदार, नैतिक संघर्षरत व्यक्ति का था।

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बंदिनी में वे संवेदनशील डॉक्टर की भूमिका में थे, तो 'चुपके-चुपके' में वे उस प्रोफ़ेसर परिमल त्रिपाठी के रोल में थे, जिसने हल्की-फुल्की कॉमेडी से दर्शकों को गुदगुदाया। धर्मेंद्र के करियर की विशिष्ट भूमिकाएं उनकी बहुमुखी प्रतिभा, नायकत्व और संवाद अदायगी के लिए जानी जाती हैं। उनके कुछ किरदार बॉलीवुड के सबसे यादगार और प्रभावशाली माने जाते हैं।.धर्मेंद्र ने एक्शन हीरो के तौर पर भी अपनी छवि बनाई। मेरा गाँव मेरा देश, प्रतिज्ञा, जुगनू, समाधि, राजा जानी, और 'हुकूमत' में यह साफ दिखाई भी दिया, जिससे वे 'ही मैन' कहे जाते रहे।

धर्मेंद्र हिंदी सिनेमा के सबसे लोकप्रिय और प्रभावशाली सितारों में रहे। उनका फिल्म करियर छह दशकों से अधिक समय तक चला। उन्होंने 300 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया। 1966 में ‘फूल और पत्थर’ से धर्मेंद्र को जबरदस्त लोकप्रियता मिली, इसके बाद वे 'एक्शन हीरो' और 'ही-मैन' के रूप में पहचान गए। 1970 के दशक में वे सबसे ज़्यादा कमाई करने वाले सितारों में शामिल थे और एक साल में ही 9 से 12 फिल्में रिलीज़ होने का रिकॉर्ड भी उनके नाम रहा था।

‘शोले’ (1975) में वीरू का किरदार उनके करियर की सबसे बड़ी पहचान बना। लेकिन, वे सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं रहे। सत्यकाम, चुपके-चुपके, मेरा गाँव मेरा देश, धरमवीर, सीता और गीता, द बर्निंग ट्रेन, हुकूमत, प्रतिज्ञा, नौकर बीवी का जैसी फिल्मों के लिए भी उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा।

धर्मेंद्र ने रोमांटिक, एक्शन, कॉमेडी, थ्रिलर हर शैली की फिल्मों में सफलता पाई। लेकिन, ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्मों ने उनके करियर को नई ऊंचाई दी। 'सत्यकाम' और 'चुपके-चुपके' इसका बेहतरीन उदाहरण हैं। धर्मेंद्र हिंदी सिनेमा का एक ऐसा सितारा हैं, जिन्होंने अभिनय, एक्शन, रोमांस और सामाजिक संदेश वाली फिल्मों के माध्यम से चाहने वालों के दिलों में गहरी छाप छोड़ी। उनकी विरासत सदा बॉलीवुड में अमिट रहेगी। धर्मेंद्र ने कई फिल्मों में हास्य, जोश और भावुकता का अद्भुत मिश्रण पेश किया।

उनकी ऐसी भूमिकाएं हिंदी सिनेमा की सबसे प्रतिष्ठित भूमिकाओं में आती है।.'सत्यकाम' में धर्मेंद्र ने ईमानदार, नैतिक संघर्षरत व्यक्ति का रोल निभाया, जिसे आलोचकों और दर्शकों दोनों ने सर्वश्रेष्ठ मान्यता दी। जबकि, 'बंदिनी' में उन्होंने संवेदनशील डॉक्टर का किरदार निभाया तो 'चुपके-चुपके' में मानवीय मूल्यों और सहानुभूति के प्रतीक.प्रोफेसर परिमल त्रिपाठी बने, जिसमें हल्की-फुल्की कॉमेडी में उनकी अभिनय क्षमता का हास्य रूप सामने आया। 'फूल और पत्थर' का शाका में वे नेकदिल इंसान के रोल में दिखाई दिए। 'अनुपमा' का राम रोमांटिक और संवेदनशील चरित्र था जिसका चर्चित काव्यात्मक अंदाज दर्शक आज भी नहीं भूले।

धर्मेंद्र ऐसे अभिनेता हैं, जिन्होंने हर भूमिका, हर जॉनर में अपने अभिनय का जादू बिखेरा और हिंदी सिनेमा की परंपरा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। एक्शन, रोमांस, कॉमेडी और ड्रामा हर भूमिका में बेजोड़ अदाकारी की और अपनी बहुमुखी प्रतिभा से दर्शकों को हमेशा प्रभावित किया।

उन्होंने 'फूल और पत्थर' और 'मेरा गांव मेरा देश' जैसी फिल्मों में सख्त और साहसी नायक का किरदार निभाया, वहीं 'चुपके चुपके' और 'प्रतिज्ञा' में हल्का-फुल्का रोल अदा किया, जिससे उनकी कॉमिक टाइमिंग सामने आई। 'शोले' में चुलबुले लेकिन निडर वीरु और 'अनुपमा' में विचारशील लेखक बनकर उन्होंने अपने अभिनय की गहराई को दर्शाया। 'हकीकत' जैसी फिल्म में युद्ध के दृश्यों और भावनाओं को, और 'लोफर' जैसी फिल्मों में रोमांटिक व कॉमिक किरदार को उन्होंने जीवंत बनाया।

धर्मेन्द्र 'ही मैन' के नाम से मशहूर रहे हैं, लेकिन एक्शन के साथ भावनात्मक और हास्य भूमिका में भी वे उतने ही सशक्त दिखे। उनके करियर में 300 से अधिक फिल्में हैं। उनके खाते में पद्मभूषण जैसे सम्मान के साथ कई यादगार ब्लॉकबस्टर फिल्में भी हैं। 1997 में फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड के साथ, हिंदी सिनेमा में योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कार मिले।

उन्‍होंने हर दौर में अपनी छवि को बरकरार रखते हुए फिल्मों में सक्रियता बनाए रखी। चरस, शोले, राजपूत, कातिलों के कातिल और 'समधी' आदि इसी का प्रमाण है। उनकी एक्टिंग स्टाइल में सहजता, इमोशन और दर्शकों से जुड़ने की क्षमता हमेशा कायम रही। उनकी की अभिनय शैली में समय के साथ गहरी परिपक्वता और विविधता आई। शुरुआती दौर में वे रोमांटिक और संवेदनशील किरदारों के लिए पहचाने गए।

1970 के दशक में एक्शन हीरो के रूप में उनका बोलबाला हुआ और बाद के सालों में उन्होंने भावनात्मक और चरित्र प्रधान भूमिकाएं की। धर्मेन्द्र की छवि रोमांटिक हीरो और संवेदनशील पात्रों की रही। अनुपमा, बंदिनी और 'हकीकत' जैसी फिल्मों में उनके अभिनय में मासूमियत, सहजता और कोमलता प्रमुख रही। लेखकों तथा निर्देशकों के निर्देशन में उन्होंने साहित्यिक, दार्शनिक और आदर्शवादी किरदारों को गहराई से निभाया।

धर्मेंद्र का शुरुआत समय संघर्ष से भरा रहा। 8 दिसंबर 1935 को पंजाब में जन्मे इस कलाकार के फिल्मी सफर की शुरुआत 1960 में अर्जुन हिंगोरानी की फिल्म 'दिल भी तेरा हम भी तेरे' से हुई थी। शुरुआती दौर में उन्हें साधारण भूमिकाएं मिलीं, लेकिन जल्दी ही उनके अभिनय और व्यक्तित्व ने दर्शकों को आकर्षित करना शुरू कर दिया।

उम्र बढ़ने के साथ धर्मेन्द्र ने सपोर्टिंग और चरित्र प्रधान भूमिकाएँ निभानी शुरू की। प्यार किया तो डरना क्या, लाइफ इन अ मेट्रो, अपने और 'यमला पगला दीवाना' जैसी फिल्मों में अपनापन, विनम्रता और हँसमुख अंदाज देखने को मिला। भावनात्मक दृश्य निभाने में नयापन और अनुभव की परछाई उनके अभिनय में साफ झलकी।

धर्मेन्द्र के अभिनय का हर दौर, बदलते सामाजिक और फिल्मी चलनों के हिसाब से ढलता गया। कभी रोमांटिक, कभी एक्शन, कभी हास्य और अंत में पारिवारिक किरदारों में उनकी सादगी और गहराई दर्शकों के दिलों में आज भी ताजा है। इसी दौर में उनकी अनोखे किरदारों में आत्मविश्वास, ऊर्जा और ‘ही-मैन’ वाली मर्दानगी छवि जुड़ गई। लेकिन, अब इस हरफनमौला अभिनेता की हर भूमिका का खाता बंद हो गया। अब धर्मेंद्र को उनकी फिल्मों से याद किया जाता रहेगा।

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