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RIP Dharmendra : बिल्कुल अलग इंसान थे धरमजी, ‘स्टारडम' के बावजूद कोई बदलाव नहीं देखा : अभिनेता को याद कर भावुक हुईं शर्मिला

धर्मेंद्र का लंबी बीमारी के बाद सोमवार को 89 साल की उम्र में निधन हो गया
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RIP Dharmendra : जानी-मानी अभिनेत्री शर्मिला टैगोर ने ‘‘सत्यकाम'' और ‘‘चुपके चुपके'' जैसी फिल्मों के अपने सह-कलाकार धर्मेंद को याद करते हुए सोमवार को कहा कि धरमजी बिल्कुल अलग इंसान थे। उन्होंने ‘स्टारडम' के बावजूद लोगों के प्रति अपने रवैये में अंत तक कोई अंतर नहीं आने दिया। शर्मिला टैगोर ने कहा कि धर्मेंद्र एक ऐसे इंसान थे, जो अपनी जड़ों से जुड़े रहे।

धर्मेंद्र का लंबी बीमारी के बाद सोमवार को 89 साल की उम्र में निधन हो गया। अभिनेत्री ने कहा कि उनके पास अभिनेता धर्मेंद्र की केवल प्यारी यादें हैं, वह एक मिलनसार और सहयोगी इंसान थे, जो अमीर या गरीब, सभी से समान गर्मजोशी से मिलते थे। उन्होंने कहा कि मुझे अंत तक उनमें (धरमजी) कोई बदलाव नजर नहीं आया। एक अभिनेता के तौर पर, निस्संदेह उनके साथ अभिनय करना अद्भुत था। सेट पर भीड़ या लोगों के प्रति उनका व्यवहार वैसा ही मिलनसार और सहयोगी था। वह अमीर हों या गरीब, सभी से समान गर्मजोशी से मिलते थे। मैंने उन्हें बिना किसी झिझक के सड़क पर किसी को भी गले लगाते देखा है।

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उन्होंने बताया कि वह (धर्मेंद्र) बिल्कुल अलग थे। वह अपनी जड़ों को कभी नहीं भूले और इसके बारे में खुलकर बात करते थे। जैसा कि कहा जाता है, वह जमीन से जुड़े इंसान थे और अपनी असलियत के बेहद करीब रहे... स्टारडम और लोकप्रियता के बावजूद मैंने उनमें कोई बदलाव नहीं देखा। धर्मेंद्र और शर्मिला टैगोर ने हिंदी सिनेमा में कई फिल्मों में काम किया, लेकिन फिल्म निर्माता हृषिकेश मुखर्जी की फिल्मों में उनकी जोड़ी आज भी यादगार है।

उन्होंने ‘‘अनुपमा'' और ‘‘सत्यकाम'' में साथ काम किया, जो उनकी सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक हैं। मुखर्जी के साथ उनकी सबसे लोकप्रिय फिल्म कॉमेडी ड्रामा ‘‘चुपके-चुपके'' थी और शर्मिला टैगोर का मानना ​​है कि धर्मेंद्र को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिलना चाहिए था। इस फिल्म में उन्होंने हिंदी बोलने वाले ड्राइवर का नाटक करते हुए वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर की भूमिका निभाई थी।

अभिनेत्री ने कहा कि ...‘चुपके-चुपके' के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिलना चाहिए था। वह शानदार थे, लेकिन मुझे लगता है कि उन दिनों ऐसा कुछ सोचा जाता था कि कॉमेडी फिल्म (में काम करने वाले अभिनेता) के बजाय सिर्फ एक गंभीर अभिनेता को ही पुरस्कार मिलना चाहिए, ऐसा ही कुछ सोचा जाता था।

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