जयपुर, 16 जुलाई (एजेंसी)
केंद्रीय विधि मंत्री किरण रिजिजू ने अदालतों में स्थानीय व क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग की पुरजोर वकालत करते हुए शनिवार को कहा कि ‘अदालत की भाषा अगर आम भाषा हो जाए हम कई समस्याओं को हल कर सकते हैं।’ मंत्री ने कहा कि मातृभाषा को अंग्रेजी से कमतर नहीं माना जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने कार्यपालिका व न्यायपालिका के बीच बेहतर तालमेल पर जोर दिया और कहा कि न्याय के दरवाजे सभी के लिए समान रूप से खुले होने चाहिए। रिजिजू यहां विधिक सेवा प्राधिकरणों के दो दिवसीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट में तो बहस से लेकर फैसले सब अंग्रेजी में होते हैं। लेकिन हाईकोर्ट को लेकर हमारी सोच है कि उनमें आगे जाकर स्थानीय व क्षेत्रीय भाषाओं को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।’ उन्होंने कहा, ‘कई वकील हैं जो कानून जानते हैं लेकिन अंग्रेजी में उसे सही ढंग से पेश नहीं कर पाते। …तो अदालत में अगर आम भाषा का उपयोग होने लगे तो इससे कई समस्याएं हल हो सकती हैं। अगर कोई वकील अंग्रेजी बोलता है तो उसकी फीस ज्यादा होती है, ऐसा क्यों होना चाहिए? अगर मुझे अंग्रेजी नहीं बोलनी आती और मुझे मातृभाषा बोलना सहज लगती है तो मुझे अपनी मातृभाषा में बोलने की आजादी होनी चाहिए।’
मंत्री ने कुछ वकीलों की भारी भरकम फीस को लेकर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा, ‘जो लोग अमीर होते हैं वे अच्छा वकील कर लेते हैं। सुप्रीम कोर्ट में कई वकील ऐसे हैं जिनकी फीस आम आदमी नहीं दे सकता है। एक-एक केस में हाजिर होने के अगर 10 या 15 लाख रुपये लेंगे तो आम आदमी कहां से लाएगा?’ उन्होंने कहा, ‘कोई भी अदालत कुछ विशिष्ट लोगों के लिए नहीं होनी चाहिए। आम आदमी को अदालत से दूर रखने वाला हर कारण हमारे लिए बहुत चिंता का विषय है। मैं हमेशा मानता हूं कि न्याय का द्वार सबके लिए हमेशा व बराबर खुला रहना चाहिए।’