इनेलो की सफल रैली के बाद कांग्रेस पर बढ़ा दबाव
राजनीतिक विश्लेषण : हरियाणा में जाट वोट बैंक पर तगड़ी सियासी जंग
रोहतक की धरती पर इनेलो की कामयाब रैली ने हरियाणा की राजनीति को नया मोड़ दे दिया है। पूर्व उपप्रधानमंत्री चौ. देवीलाल की जयंती पर आयोजित ‘सम्मान दिवस’ कार्यक्रम में उमड़ी अभूतपूर्व भीड़ ने यह संदेश स्पष्ट कर दिया कि जाट राजनीति में इनेलो अब भी एक सशक्त धुरी है। इनेलो सुप्रीमो अभय सिंह चौटाला ने न सिर्फ संगठन में नयी जान फूंक दी, बल्कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के गढ़ ओल्ड रोहतक में सीधी चुनौती पेश करके यह भी दिखा दिया कि जाट वोट बैंक को लेकर वह लंबी लड़ाई लड़ने को तैयार हैं। यह कांग्रेस नेतृत्व के लिए बड़ा अलार्म है। जाट वोटर कांग्रेस के साथ लामबंद रहा है और अब इसे अपने साथ जोड़कर चलना कांग्रेस की मजबूरी भी है और चैलेंज भी।
हरियाणा कांग्रेस लंबे समय से संगठनात्मक अस्थिरता से जूझ रही है। पार्टी आलाकमान प्रदेशाध्यक्ष और कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) नेता की नियुक्ति को लेकर एक साल से अधिक समय से अनिर्णय की स्थिति में है। राहुल गांधी के संगठन सृजन अभियान के तहत जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में भले ही सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला अपनाया गया हो, मगर जाटों का वर्चस्व संतुलित किए बिना इस ढांचे को अधूरा बताया जा रहा है। यह देरी अब कांग्रेस के लिए बोझ बनती जा रही है। खासकर तब, जब इनेलो ने रोहतक में शक्ति प्रदर्शन कर यह जता दिया है कि जाट समाज को नेतृत्वहीन नहीं छोड़ा जा सकता।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने एक दशक तक मुख्यमंत्री के रूप में और 2019 से 2024 तक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में कांग्रेस को दिशा दी। उनका राजनीतिक आधार ओल्ड रोहतक जाट राजनीति का हृदयस्थल माना जाता है। उन्हें किनारे करना कांग्रेस के लिए न केवल राजनीतिक जोखिम होगा,बल्कि संगठनात्मक संकट को और गहरा करेगा। पार्टी के भीतर यह चर्चा तेज है कि हुड्डा को दोबारा सीएलपी लीडर बनाया जा सकता है। अगर ऐसा नहीं होता तो उनके सांसद पुत्र दीपेंद्र हुड्डा को प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी देने का विकल्प खुला रखा गया है। हालांकि, पार्टी की गुटबाजी और एंटी हुड्डा खेमे का विरोध भी किसी से छुपा नहीं है।
इधर, फायदे का सौदा :
सत्तारूढ़ भाजपा के लिए जाट दिग्गजों का आपस में उलझना फायदे का सौदा ही कहा जाएगा। साल 2024 के विधानसभा चुनाव में जाट वोटर का जितना ध्रुवीकरण हुआ, उतना प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ। भाजपा शुरू से ही गैर-जाट की राजनीति करती आई है। इनेलो को अगर मजबूती मिलती है तो कांग्रेस के जाट वोट बैंक में सेंधमारी होगी। यह स्थिति भी भाजपा के लिए फायदेमंद ही मानी जाएगी।
2029 का रोडमैप और बदलती राजनीति
2029 के लोकसभा चुनावों तक हरियाणा का सियासी परिदृश्य तेजी से बदलेगा। भाजपा विकास और स्थिरता का कार्ड खेलते हुए गैर-जाट समीकरण को और गहरा करने की कोशिश करेगी, जबकि इनेलो अभय चौटाला के नेतृत्व में खुद को जाटों का असली प्रतिनिधि बताने में जुटी है। कांग्रेस को यदि 2029 के विधानसभा चुनाव में वापसी करनी है तो उसे जाटों के साथ-साथ दलित, पिछड़े और शहरी गैर-जाट वोटों का संतुलन भी साधना होगा। इसके लिए न केवल संगठनात्मक निर्णयों में तेजी चाहिए बल्कि ज़मीनी स्तर पर युवा नेतृत्व को उभारने की रणनीति भी जरूरी है।
अब नहीं तो कभी नहीं वाली घड़ी
रोहतक की इनेलो रैली ने साफ कर दिया है कि जाट राजनीति का असर कम नहीं हुआ है। कांग्रेस के लिए यह ‘अब या कभी नहीं’ जैसा समय है। हाईकमान यदि जल्द ही प्रदेशाध्यक्ष और सीएलपी लीडर पर ठोस और संतुलित फैसला नहीं लेती, तो जाट समाज को ठोस नेतृत्व का भरोसा नहीं मिलेगा। हुड्डा जैसे वरिष्ठ नेता को सम्मान देना, जाट समाज को विश्वास में लेना और युवा नेतृत्व को सामने लाना ही कांग्रेस के पुनर्जीवन का अहम रास्ता हो सकता है। अन्यथा इनेलो और भाजपा, दोनों के लिए सत्ता की राह और आसान हो जाएगी।