नयी दिल्ली, 9 अप्रैल (एजेंसी)
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि चुनाव से पहले या बाद में किसी भी चुनावी तोहफे की पेशकश करना या बांटना संबद्ध पार्टी का नीतिगत फैसला है। क्या इस तरह की नीतियां वित्तीय रूप से व्यवहार्य हैं या राज्य की आर्थिक स्थिति पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, एक ऐसा सवाल है जिस पर राज्य के मतदाताओं को विचार करना होगा और निर्णय लेना होगा।
आयोग ने अपने हलफनामे में कहा, ‘निर्वाचन आयोग राजकीय नीतियों व उन फैसलों का नियमन नहीं कर सकता, जो विजेता पार्टी द्वारा सरकार गठित करने पर लिये जा सकते हैं। कानून में प्रावधान उपलब्ध किये बगैर इस तरह की कार्रवाई, शक्तियों के दायरे से बाहर होगी।’
आयोग ने कहा कि दिसंबर 2016 में चुनाव सुधारों पर 47 प्रस्तावों का एक सेट केंद्र को भेजा गया था, जो राजनीतिक दलों से जुड़े सुधारों के बारे में था। इनमें से एक अध्याय राजनीतिक दलों के पंजीकरण समाप्त करने के संबंध में था। आयोग ने यह भी कहा, ‘निर्वाचन आयोग ने कानून मंत्रालय को भी यह सिफारिश की थी कि उसे राजनीतिक दलों के पंजीकरण समाप्त करने के लिए आवश्यक आदेश जारी करने की शक्तियों का इस्तेमाल करने में सक्षम बनाया जाए।’
आयोग ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के अपने फैसले में निर्देश दिया था कि चुनाव आयोग के पास तीन आधार को छोड़ कर किसी राजनीतिक दल का पंजीकरण रद्द करने की कोई शक्ति नहीं है।