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Social Media Rules : सोशल मीडिया नियंत्रण की याचिका अस्वीकार, कोर्ट ने कहा – नियमों की नहीं जरूरत

सोशल मीडिया खातों पर रोक के संबंध में दिशानिर्देश जारी करने की याचिका न्यायालय ने की खारिज
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Social Media Rules : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सोशल मीडिया खातों को निलंबित और ब्लॉक करने के संबंध में इस तरह का परिचालन करने वाली कंपनियों के विनियमन के लिहाज से अखिल भारतीय स्तर पर दिशानिर्देश जारी करने के अनुरोध वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।

शीर्ष अदालत ने दो याचिकाकर्ताओं को याचिका वापस लेने की अनुमति दी और कहा कि वे किसी भी उपयुक्त मंच पर कानून में उपलब्ध किसी भी अन्य उपाय का सहारा लेने के लिए स्वतंत्र हैं। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ को याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील ने बताया कि उनका व्हाट्सएप, जिसका इस्तेमाल वे ग्राहकों से संवाद करने के लिए करते थे, ब्लॉक कर दिया गया है। पीठ ने कहा, ‘‘अन्य संचार ऐप भी हैं, आप उनका इस्तेमाल कर सकते हैं।''

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पीठ ने यह भी पूछा कि याचिकाकर्ताओं का व्हाट्सएप क्यों ब्लॉक किया गया है। याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि उन्हें कोई कारण नहीं बताया गया। पीठ ने कहा, ‘‘व्हाट्सएप तक पहुंच का आपका मौलिक अधिकार क्या है?'' पीठ ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सीधे शीर्ष अदालत का दरवाजा क्यों खटखटाया। वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता, जिनका एक क्लिनिक और एक पॉलीडायग्नोस्टिक सेंटर है, अपने ग्राहकों से व्हाट्सएप के जरिए संवाद कर रहे थे और पिछले 10-12 वर्ष से इस मैसेजिंग प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर रहे थे।

पीठ ने कहा कि हाल में एक स्वदेशी मैसेजिंग ऐप बनाया गया है और याचिकाकर्ता अपने ग्राहकों से संवाद के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता अपनी शिकायतों के साथ हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। वकील ने याचिका में की गई प्रार्थना का हवाला दिया और कहा कि याचिकाकर्ताओं ने ‘‘अकाउंट निलंबित करने और ब्लॉक करने, उचित प्रक्रिया, पारदर्शिता और सुनिश्चित करने के संबंध में सोशल मीडिया मध्यस्थों के संचालन के लिए'' अखिल भारत स्तर पर दिशानिर्देश जारी करने का अनुरोध किया है।

वकील ने कहा कि उन्हें जवाब देने का कोई मौका दिए बिना उनके व्हाट्सएप को कैसे ब्लॉक किया जा सकता है। पीठ ने पूछा, ‘‘क्या व्हाट्सएप या मध्यस्थ, एक राज्य है?'' जब वकील ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है'', तो पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट के समक्ष एक रिट याचिका भी विचारणीय नहीं हो सकती है। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता एक दीवानी मुकदमा दायर कर सकते हैं।

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