नयी दिल्ली, 14 अप्रैल (एजेंसी)
महामारी का असर धीरे-धीरे कम होने और लोगों की लापरवाही के अलावा, दूसरी एवं एहतियाती खुराक के बीच का 9 महीने का अंतर होने के कारण 18-59 आयु वर्ग के लोगों में कोविड-19 रोधी टीके की एहतियाती खुराक लेने के प्रति उदासीनता देखी जा रही है। विशेषज्ञों ने बृहस्पतिवार को यह बात कही। एम्स के प्रमुख डा. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि पहले की बजाय अब लोगों के अंदर बीमारी का डर कम है और संक्रमण के मामले कम होने के चलते वे लापरवाह हो गए हैं। इसके साथ ही गुलेरिया ने चेतावनी दी कि वैज्ञानिक आंकड़ों से पता चला है कि रोग प्रतिरक्षा समय के साथ क्षीण होती जाती है और किसी भी आयु वर्ग में पहले से किसी अन्य रोग से पीड़ित व्यक्तियों के और अधिक गंभीर रूप से बीमार होने का खतरा बना रहता है। गुलेरिया ने कहा, ‘कोविड कहीं नहीं गया है और किसी भी समय वायरस के नए प्रकार उभर सकते हैं। किसी भी आयु वर्ग के पहले से किसी रोग से पीड़ित व्यक्ति को और गंभीर बीमारी होने का खतरा बना रहता है।’
एम्स में मेडिसिन विभाग में अतिरिक्त प्रोफेसर डा. नीरज निश्चल ने कहा कि कोविड का खतरा अभी कुछ और समय के लिए बरकरार रहेगा। ओमीक्रोन की लहर ने उतनी तबाही नहीं मचाई जितनी उससे पहले की दो लहरों ने मचाई थी। जुर्माना नहीं लगाए जाने का यह मतलब नहीं है कि यह नियम महत्वहीन हो गए हैं।
राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी), पुणे में वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. प्रज्ञा यादव ने कहा कि एक निश्चित अवधि के बाद एंटीबॉडी का स्तर घट जाता है,इसलिए एहतियाती खुराक लेने से प्रतिरक्षा क्षमता बढ़ाने में मदद मिल सकती हैै।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कम लोगों द्वारा एहतियाती खुराक लेने के लिए 9 महीने का अंतर जिम्मेदार है। फोर्टिस के डा. रवि शेखर झा ने कहा कि अंतर लगभग छह महीने का होना चाहिए। चार से पांच महीने के बाद एंटीबाडी का स्तर घटने लगता है, इसलिए एहतियाती खुराक महत्वपूर्ण है।