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Pauranik Kathayen : श्रीहरि की पसंदीदा तुलसी शिवलिंग पर चढ़ाना वर्जित क्यों? इसके पीछे छिपा है यह श्राप

Pauranik Kathayen : श्रीहरि की पसंदीदा तुलसी शिवलिंग पर चढ़ाना वर्जित क्यों? इसके पीछे छिपा है यह श्राप
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चंडीगढ़, 29 दिसंबर (ट्रिन्यू)

Pauranik Kathayen : जब हम अपने देवी-देवताओं की पूजा करते हैं तो उसके पीछे ना सिर्फ हमारा विश्वास बल्कि कोई न कोई पौराणिक मान्यता छिपी होती है। भक्त देवी-देवताओं से प्रार्थना करते हैं तो वे आमतौर पर इस दौरान उन्हें ढेर सारा प्रसाद चढ़ाते हैं। ऐसा देवताओं को प्रभावित करने की आशा और इच्छा से किया जाता है, ताकि वे हमें आशीर्वाद दें।

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देवी-देवताओं को अर्पित की जाने वाली सभी पवित्र और शुद्ध चीजों में एक तुलसी का अपना अलग स्थान है। तुलसी के पत्ते - एक पवित्र पौधा, जिसे सभी देवी-देवताओं को चढ़ाया जाता है। हालांकि शिवलिंग, भगवान गणेश और देवी दुर्गा को तुलसी के पत्तों का प्रसाद अर्पित नहीं किया जाता। शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव को शिवलिंग पर तुलसी के पत्ते चढ़ाना वर्जित है।

वृंदा/तुलसी की कहानी

पुराणों के अनुसार, जालंधर नाम का एक राक्षस था और उसकी पत्नी वृंदा भगवान विष्णु की बड़ी भक्त थी। जालंधर बहुत क्रूर था और उसने देवी-देवताओं के जीवन को नरक बना दिया था लेकिन वृंदा की प्रार्थना बहुत शक्तिशाली थी। इसलिए देवी-देवता जालंधर को कुछ नहीं कर पाए। सभी देवी-देवता राक्षस को मारने का कोई उपाय नहीं खोज पाए तो वे भगवान शिव के पास गए।

तब भगवान विष्णु ने वृंदा को उसके पति जालंधर का रूप धारण करके धोखा दिया। वृंदा ने भगवान विष्णु को अपना पति मानकर उनके पैर छुए। भगवान विष्णु के पैर छूते ही उसका सतीत्व नष्ट हो गया। भगवान शिव ने जलंधर से युद्ध किया और वृंदा का सतीत्व नष्ट हो जाने के कारण उसे बचाने वाली शक्ति नष्ट हो गई। वृंदा समझ गई कि उसने अपने पति के चरण नहीं छुए हैं।

उसने भगवान विष्णु से अपने मूल रूप में आने के लिए कहा। सतीत्व खोने पर वृंदा पूरी तरह टूट गई और भगवान विष्णु को पत्थर में बदल जाने का श्राप दे दिया, जिसे पुराणों में शालिग्राम के नाम से जाना जाता है। जलंधर राक्षस के मारे जाने से सभी देवी-देवताओं की समस्या का समाधान हो गया। वृंदा को पवित्र तुलसी के रूप में पुनर्जन्म का वरदान मिला।

वृंदा जानती थी कि उसके पति को भगवान शिव ने मार डाला था। इसलिए उसने शिव को अपने किसी भी अंग से पूजा करने से मना कर दिया। यही कारण है कि भगवान शिव को पवित्र तुलसी या तुलसी के पत्ते नहीं चढ़ाए जाते हैं जबकि भगवान विष्णु को अर्पित की जाने वाली पूजा तभी पूरी मानी जाती है जब उनके प्रसाद में तुलसी के पत्ते हो।

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