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Pauranik Kathayen : जब श्रीकृष्ण की मूर्ति पर मोहित हो गई थी मीरा, मोहन के प्रेम में पिया विष का प्याला

Pauranik Kathayen : जब श्रीकृष्ण की मूर्ति पर मोहित हो गई थी दीवाना, मोहन के प्रेम में पिया विष का प्याला
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चंडीगढ़, 18 जनवरी

Pauranik Kathayen : मीरा बाई श्री कृष्ण के प्रति अपने अमर प्रेम के लिए जानी जाती हैं। मीरा बाई की कहानी सदियों से गाई जाती आ रही है। उन्होंने जो भी भजन और कविताएं लिखीं, वे मीरा और कृष्ण के दिव्य प्रेम की यादें बन गईं, लेकिन मीरा बाई कौन थीं? उनका जन्म कहां हुआ था? उनकी कहानी क्या थी? चलिए आज हम आपको इसके बारे में बताते हैं...

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एक मुस्कान से मोह लेती थीं सबका दिल

मीरा बाई राजपूत राजा रतन सिंह और उनकी पत्नी वीर कुमारी की बेटी थीं। उनका जन्म वर्ष 1498 में राजस्थान के खुरकी में हुआ था। वह बचपन से ही बेहद सुंदर थी। उनकी खूबसूरत मुस्कान सभी को अपनी ओर आकर्षित करती थी। बचपन में भी वह अपने आस-पास के सभी लोगों के प्रति विनम्र और दयालु थीं लेकिन नियति ने उनके लिए कुछ और ही योजना बनाई थी।

10 साल की उम्र में श्रीकृष्ण पर हुई मोहित

मीरा लगभग 4 साल की थीं जब आंगन में खेलते हुए एक संत को बाहर से पुकारते हुए सुना। उसने संत को बहुत विनम्रता से अंदर आने के लिए कहा। उन्होंने उन्हें कुछ भोजन और पानी भी दिया। फिर संत को थोड़ी देर के लिए अंदर आराम करने को कहा। जब संत आराम कर रहे थे तो उन्होंने अपनी श्रीकृष्ण की मूर्ति को मंदिर के पास रख दिया।

जब कृष्ण की मूर्ति की सुंदरता ने मोहित कर लिया

उस मूर्ति की सुंदरता ने मीरा को मोहित कर लिया और वह उसे देखती रही। थोड़ी देर बाद मूर्ति से ही बातें करने लगी जैसे कि वह जीवित हो। जब संत की नींद खुली तो उसने देखा कि मीरा मूर्ति से बात कर रही थी। संत वहां से जाने लगे तो उन्होंने मीरा से पूछा कि वह सेवा के बदले क्या चाहती है। इस पर मीरा उनसे श्रीकृष्ण की मूर्ति मांगने लगी। मगर संत बिना कुछ कहे चलने लगे।

संत को जाता देख मीरा रोने लगी, जिससे उनका दिल पिघल गया और उन्होंने श्रीकृष्ण मूर्ति को नन्हीं बच्ची को दे दिया। उस समय मीरा इतनी खुश हुई मानो उसे पूरी दुनिया मिल गई हो। इसके बाद मीरा श्रीकृष्ण से बात करती, उन्हें कपड़े पहनाती, उनके साथ खेलती, नाचती और कविताएं गाती। हर सांस, हर शब्द उसके श्रीकृष्ण के लिए था मानो उसका प्यार और स्नेह हमेशा उसे बांधे रखता हो। इस तरह वह अपने श्रीकृष्ण से प्यार करने लगी।

कृष्ण ने मीरा से विवाह क्यों किया?

एक बार मीरा और उनका पूरा परिवार एक विवाह में गया था, जहां वह अपने कान्हा को भी साथ ले गई थी। वहां पहुंचने के बाद मीरा विवाह की सजावट से इतनी मोहित हुई कि उसने मां से पूछा, "माई सा! मेरा पति कौन होगा?" इस पर हंसते हुए उन्होंने कहा, “और कौन होगा? सिर्फ तुम्हारा कान्हा ही न!” मीरा ने इस बात को इतनी गंभीरता से लिया कि वह श्रीकृष्ण को ही पति मान बैठी।

मीरा को भोज राज से विवाह क्यों करना पड़ा?

कम उम्र में ही उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई। मीरा बाई की उम्र महज 10 साल थी जब उन्हें दादा-दादी राव दुदाजी और उनकी पत्नी के पास छोड़ दिया गया। जल्द ही मीरा शादी करने लायक हो गईं और उनके लिए कई रिश्ते आए लेकिन उनके दादा राव दूदा जी को वे पसंद नहीं आए। फिर एक दिन राणा सांगा ने अपने बेटे भोज राज के लिए विवाह का प्रस्ताव भेजा, जो सुंदर राजकुमार था।

इस प्रस्ताव को सुनने के बाद राव दूदा जी मना नहीं कर पाए लेकिन जब वह मीरा को बताने गए तो वो रो पड़ीं। मीरा ने कहा कि उनकी मां ने पहले ही उनके कान्हा से उनकी शादी करवा दी है। मगर, सब कुछ होने के बावजूद वह प्रस्ताव को अस्वीकार नहीं कर सकीं और उन्हें भोज राज से विवाह करना पड़ा। विवाह के बाद मीरा अपने प्रिय “कान्हा” की पूजा, गायन और नृत्य में खुद को व्यस्त रखती थीं।

वह नियमित रूप से पास के श्रीकृष्ण मंदिर जाती थीं। अन्य संतों के साथ घंटों बैठती और नृत्य करती थीं। राजा भोज मीरा के श्रीकृष्ण प्रेम को समझते थे लेकिन वे अपनी पत्नी से अपने लिए भी प्रेम की कामना करते थे। फिर समय बीतने के साथ-साथ सभी मीरा के श्रीकृष्ण से रिश्ते के खिलाफ हो गए। कई बार लोग उन्हें पागल कहते लेकिन इससे कभी भी उनपर कोई असर नहीं पड़ा।

जब मीरा पर लगा देशद्रोही का इल्जाम

एक दिन जब राजा भोज अपने महल में लौटे तो उन्होंने देखा कि सभी मीरा पर चिल्ला रहे थे। जब उन्होंने इस बारे में अपने पिता से पूछा तो उन्हें पता चला कि मीरा ने मुगल अकबर से एक उपहार स्वीकार किया है। अकबर ने मीरा के कृष्ण के लिए एक सोने का हार भेजा था। यह वह समय था जब मुगल और राजपूत एक दूसरे के दुश्मन थे। इसके लिए उन्हें देशद्रोही कहा गया।

मीरा चुपचाप यह सब सुन रही थीं लेकिन उनके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला। राजा भोज भी इस बात से सहमत नहीं थे। वह जानते थे कि श्रीकृष्ण के प्रति उनके प्रेम ने उन्हें मुगल से ऐसा उपहार स्वीकार करने के लिए मजबूर किया। मगर, फिर भी वह इस बारे में कुछ भी करने में असमर्थ थे। मीराबाई को मृत्युदंड के रूप में जहर का एक प्याला पीने के लिए दिया गया और वह उसे मुस्कुराते हुए पी गईं।

उसके बाद वह अपना इकतारा लेकर श्रीकृष्ण मंदिर की ओर चली गई और अपना पसंदीदा पद गाती हुई बोली, “मेरे तो गिरधर गोपाला डरसो न कोई”। मंदिर के बाहर सभी लोग उसके रोने का इंतजार कर रहे थे लेकिन कोई आवाज नहीं आई।

कृष्ण और मीरा कैसे हुए एक?

लोगों ने मंदिर में जाकर देखा कि वहां सिर्फ उसका इकतारा और श्रीकृष्ण की मूर्ति के चारों ओर लिपटा उसका भगवा वस्त्र पड़ा है। ऐसा कहा जाता है कि श्रीकृष्ण के प्रति मीरा के प्रेम ने अंततः उन्हें उनके “गिरधर गोपाला” में डुबो दिया।

इस तरह मीरा और श्रीकृष्ण हमेशा के लिए एक हो गए। माना जाता है कि मीरा पिछले जन्म में वृदांवन में श्रीकृष्ण की एक गोपी थी और इस जन्म में अपना प्रेम पूर्ण करने के लिए आई थी।

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