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Pauranik Kathayen : महाभारत युद्ध में एकलव्य कैसे बने अपने ही गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु का कारण?

Pauranik Kathayen: महाभारत युद्ध में एकलव्य कैसे बने अपने ही गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु का कारण?
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चंडीगढ़, 19 दिसंबर (ट्रिन्यू)

Pauranik Kathayen : पौराणिक कथाओं के अनुसार, एकलव्य एक गरीब शिकारी का बेटा था। एकलव्य शक्तिशाली धनुर्धर और योद्धा था जो राजघराने के शिक्षक द्रोणाचार्य से शिक्षा लेना चाहता था। हालांकि, जाति जानकर द्रोणाचार्य ने एकलव्य को पढ़ाने से मना कर दिया क्योंकि केवल राजा, उनके परिवार के सदस्य और क्षत्रिय ही उनसे धनुर्विद्या सीख सकते थे।

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तब एकलव्य ने द्रोणाचार्य की एक मिट्टी की मूर्ति बनाई और खुद ही धनुर्विद्या का अभ्यास किया। वह द्रोण के सबसे अच्छे छात्र अर्जुन से भी बेहतर बन गया। जब द्रोणाचार्य को पता चलता है कि एकलव्य उनके प्रिय शिष्य अर्जुन को हरा सकता है तो वह उसके पास गए और गुरु दक्षिणा में दाएं हाथ का अंगूठा मांग लिया, ताकि वह कभी धनुष ना चला सकें।

पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि एक अच्छा शिष्य होने के नाते एकलव्य ने द्रोणाचार्य को अंगूठा समर्पित कर दिया। मगर फिर, रुकमणि स्वयंवर के दौरान एकलव्य की मृत्यु श्रीकृष्ण के हाथों हो गई। वह अपने पिता की रक्षा कर रहे थे और बचाव के लिए धनुष ना चला सके, तभी श्रीकृष्ण के हाथों अनजाने में उनकी मृत्यु हो गई।

तब द्रोण से बदला लेने के लिए श्रीकृष्ण ने उन्हें दोबारा जन्म लेने का वरदान दिया। बाद में एकलव्य ने द्रौपदी के जुड़वां भाई धृष्टद्युम्न के रूप में पुनर्जन्म लिया इसलिए उन्हें द्रौपदा भी कहा गया। महाभारत युद्ध के दौरान कुरुक्षेत्र में जब द्रोणाचार्य ध्यान कर रहे थे तो धृष्टद्युम्न ने उनका सिर काटकर उनकी हत्या कर दी थी।

डिस्केलमनर: यह लेख/खबर धार्मिक, सामाजिक व लोक मान्यताओं पर आधारित है। dainiktribneonline.com इस तरह की बात की पुष्टि नहीं करता है।

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