भारतीय हिस्सेदारी वाले रूसी तेल क्षेत्र पर अमेरिकी प्रतिबंध के बाद OVL ने कानूनी राय मांगी
Russian oil field sanctions: ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ONGC Videsh Limited - OVL) ने अमेरिका द्वारा रूसी तेल क्षेत्र (Russian oil field) पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद कानूनी राय (Legal Opinion) मांगी है। इस तेल क्षेत्र में भारतीय कंपनियों के गठजोड़ (Indian consortium) की 49.9 प्रतिशत हिस्सेदारी (49.9% stake) है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने 22 अक्टूबर को रूस की दो सबसे बड़ी पेट्रोलियम कंपनियों रोसनेफ्ट (Rosneft) और लुकऑइल (Lukoil) के खिलाफ नए प्रतिबंधों (Sanctions) की घोषणा की, ताकि रूस पर यूक्रेन युद्ध समाप्त करने का दबाव (Pressure to end Ukraine war) बनाया जा सके।
इसके तहत, अमेरिकी वित्त विभाग (US Department of Treasury) के विदेशी संपत्ति नियंत्रण कार्यालय (ओएफएसी) (Office of Foreign Assets Control - OFAC) ने रूस स्थित रोसनेफ्ट और लुकऑइल की कई अनुषंगी कंपनियों (Subsidiaries) को प्रतिबंधित कर दिया, जिनमें उनकी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से 50 प्रतिशत या उससे अधिक हिस्सेदारी (50% or more ownership) थी।
प्रतिबंधित कंपनियों की सूची में सीजेएससी वैंकोरनेफ्ट (CJSC Vankorneft) शामिल है, जिसमें ओवीएल की 26 प्रतिशत हिस्सेदारी (26% stake) है, और ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL), इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (IOC) तथा भारत पेट्रोरिसोर्सेज लिमिटेड (BPRL) के गठजोड़ के पास 23.9 प्रतिशत हिस्सेदारी (23.9% stake) है। शेष 50.1 प्रतिशत हिस्सेदारी (50.1% stake) रोसनेफ्ट के पास है।
ओएफएसी प्रतिबंधों को सीधे तौर पर पढ़ने पर पता चलता है कि ये भारतीय कंपनियों (Indian companies) पर लागू नहीं होते। लेकिन सूत्रों के अनुसार, ओवीएल घरेलू और अंतरराष्ट्रीय विधि कंपनियों (Domestic and International law firms) से कानूनी राय ले रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह किसी प्रतिबंध उल्लंघन (Sanctions Violation) की स्थिति में न आए।
सूत्रों ने बताया कि भारतीय कंपनियों पर ओएफएसी प्रतिबंध लागू नहीं होने चाहिए क्योंकि उनके पास वैंकोरनेफ्ट में 50 प्रतिशत से कम हिस्सेदारी (Less than 50% ownership) है। इसके अतिरिक्त, भारतीय कंपनियों को कोई इक्विटी तेल (Equity Oil) नहीं मिलता। उन्हें केवल लाभांश (Dividends) प्राप्त होता है, जो तेल और गैस की बिक्री से उत्पन्न आय (Revenue) के अनुपात में दिया जाता है।
इसके अलावा, भारतीय कंपनियां इन क्षेत्रों की परिचालक (Operators) नहीं हैं। क्षेत्र से उत्पादित तेल व्यापारियों (Traders) को बेचा जाता है, जो आगे इसे वैश्विक रिफाइनरियों (Global Refineries) को बेचते हैं।
वैंकोर क्षेत्र (Vankor Field) 416.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है और पश्चिम साइबेरियाई बेसिन (West Siberian Basin) के उत्तर-पूर्वी भाग में, रूस के इगारका (Igarka, Russia) से लगभग 142 किलोमीटर दूर स्थित है।
ओवीएल ने मई 2016 में सीजेएससी वैंकोरनेफ्ट (CJSC Vankorneft) में 15 प्रतिशत हिस्सेदारी (15% stake) हासिल करने के लिए रोसनेफ्ट को 1.28 अरब अमेरिकी डॉलर (USD 1.28 billion) का भुगतान किया था। बाद में अक्टूबर 2016 में ओवीएल ने 11 प्रतिशत अतिरिक्त हिस्सेदारी (11% additional stake) के लिए 93 करोड़ अमेरिकी डॉलर (USD 930 million) में सौदा किया।
उसी वर्ष, OIL-IOC-BPRL गठजोड़ (Consortium) ने 2.02 अरब अमेरिकी डॉलर (USD 2.02 billion) में 23.9 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदी, जिससे उन्हें 65.6 लाख टन तेल समतुल्य उत्पादन (6.56 million tonnes oil equivalent) प्राप्त हुआ।
वोस्तोक ऑयल एलएलसी (Vostok Oil LLC), जो रोसनेफ्ट की एक सहयोगी कंपनी (Subsidiary) है, इन क्षेत्रों में 50.1 प्रतिशत हिस्सेदारी रखती है।
रूस पर लगे प्रतिबंधों के कारण, भारतीय कंपनियां पिछले तीन वर्षों से वैंकोरनेफ्ट से अर्जित लाभांश (Dividends from Vankorneft) स्वदेश नहीं भेज पा रही हैं। उनके रूसी बैंक खातों (Russian bank accounts) में कुल मिलाकर लगभग 1.4 अरब अमेरिकी डॉलर (USD 1.4 billion) जमा हैं।
सूत्रों ने कहा कि ओवीएल यह सुनिश्चित करना चाहती है कि वह किसी भी प्रतिबंध उल्लंघन (Sanctions Breach) में शामिल न हो, इसलिए उसने वैंकोरनेफ्ट नामक नामित (Designated Entity) इकाई में भारतीय कंपनियों की हिस्सेदारी पर कानूनी राय मांगी है।
22 अक्टूबर की कार्रवाई के बाद अमेरिकी वित्त विभाग (US Treasury) ने अपनी वेबसाइट पर कहा, “नामित या अवरुद्ध व्यक्तियों (Designated or Blocked Persons) की सभी संपत्तियां और हित (Assets and Interests), जो अमेरिका में हैं या अमेरिकी व्यक्तियों (US Persons) के कब्जे में हैं, अवरुद्ध कर दिए गए हैं और उनकी सूचना ओएफएसी को दी जानी चाहिए।”
