सत्य प्रकाश/ट्रिन्यू
नयी दिल्ली, 12 जुलाई
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुग्राम के पुलिस आयुक्त को एक भूमि घोटाले की जांच के लिए डीएसपी के नेतृत्व में एसआईटी गठित करने का आदेश दिया है। आरोप है कि रजिस्टरी अफसरों की मिलीभगत से एक बुजुर्ग एनआरआई जोड़े को ‘धोखा’ दिया गया।
जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली पीठ ने एनआरआई दंपति प्रतिभा मनचंदा एवं उनके पति की गुरुग्राम के एक गांव में 60 करोड़ रुपये से अधिक की जमीन हड़पने के लिए फर्जी दस्तावेज बनाने के आरोपी व्यक्ति की अग्रिम जमानत रद्द कर दी। अपीलकर्ताओं के अनुसार, जमीन की पूर्व मूल बिक्री संबंधी कागजात अभी भी दंपती के कब्जे में थे। ऐसे में तथ्य यह है कि विक्रेता मूल रिकॉर्ड प्राप्त किए बिना इतनी बड़ी रकम का भुगतान करने के लिए सहमत कैसे हो गया? कोर्ट ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के 31 मई के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें उस व्यक्ति को अग्रिम जमानत दी गई थी, जिस पर 1996 में एनआरआई जोड़े की जमीन हड़पने के लिए फर्जी जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी (जीपीए) बनाने का आरोप है। बेंच ने अपने आदेश में कहा, ‘संगठित आपराधिक नेटवर्क अक्सर ऐसे घोटालों की योजना बनाते हैं और उन्हें अंजाम देते हैं, कमजोर व्यक्तियों और समुदायों का शोषण करते हैं और उन्हें अपनी संपत्ति खाली करने के लिए डराते-धमकाते हैं। इन भूमि घोटालों के परिणामस्वरूप न केवल व्यक्तियों और निवेशकों को वित्तीय नुकसान होता है, बल्कि विकास परियोजनाएं भी बाधित होती हैं, जनता का विश्वास खत्म होता है और सामाजिक-आर्थिक प्रगति में बाधा आती है।’
आदेश में कहा गया है कि बिक्री दस्तावेज कथित तौर पर पैन नंबर का उल्लेख किए बिना या टीडीएस काटे बिना जारी किए गए जो इस लेनदेन की संदिग्ध प्रकृति को रेखांकित करता है। जमीन का यह मामला 1996 में उप रजिस्ट्रार, कालकाजी- नयी दिल्ली में पंजीकृत था। ऐसे में शीर्ष अदालत ने सिविल कोर्ट को कोई भी आदेश पारित करने से रोक दिया।
दो महीने में रिपोर्ट तलब
तुरंत जांच शुरू करने का निर्देश देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, ‘एसआईटी को प्रतिवादी नंबर 2, विक्रेता (क्रेता), सब रजिस्ट्रार/अधिकारियों या अन्य संदिग्धों को हिरासत में लेकर पूछताछ करने की स्वतंत्रता होगी।’ इसमें कहा गया है कि मामले की दिन-प्रतिदिन की जांच की निगरानी के लिए गुरुग्राम पुलिस आयुक्त व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे। कोर्ट ने दो माह के भीतर रिपोर्ट तलब की है।