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Operation Sindoor : नक्सलवाद के अंत से देश में बढ़ी खुशहाली, पीएम मोदी बोले- शांति और सुरक्षा ने फिर लौटाई उत्सवों की चमक

ऑपरेशन सिंदूर और नक्सलवाद के खात्मे ने त्योहारों की रौनक बढ़ायी: मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नई दिल्ली से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बिहार की मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना का वर्चुअल शुभारंभ करने के मौके पर संबोधित करते हुए। @NarendraModi via PTI Photo
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Operation Sindoor : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को छठ पूजा की शुभकामनाएं दीं और कहा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर' की सफलता और माओवादी समस्या के उन्मूलन के लिए उठाये गए कदमों के कारण इस वर्ष त्योहारों की रौनक पहले से ज्यादा हो गई है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मासिक रेडियो संबोधन ‘मन की बात' के 127वें संस्करण में कहा कि छठ पूजा भक्ति, स्नेह और परंपरा का संगम है और यह भारत की सामाजिक एकता का सबसे सुंदर उदाहरण है।

मोदी ने कहा कि छठ का महापर्व संस्कृति, प्रकृति और समाज के बीच की गहरी एकता का प्रतिबिंब है। छठ के घाटों पर समाज का हर वर्ग एक साथ खड़ा होता है। ये दृश्य भारत की सामाजिक एकता का सबसे सुंदर उदाहरण हैं। आप देश और दुनिया के किसी भी कोने में हों, यदि मौका मिले, तो छठ उत्सव में जरूर हिस्सा लें। उन्होंने त्योहारों के इस अवसर पर नागरिकों को लिखे अपने पत्र को याद करते हुए कहा कि देश की उपलब्धियों से इस बार त्योहारों की रौनक पहले से ज्यादा हो गई है।

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उन्होंने कहा कि परेशन सिंदूर' ने हर भारतीय को गर्व से भर दिया है। इस बार उन इलाकों में भी खुशियों के दीप जलाए गए जहां कभी माओवादी आतंक का अंधेरा छाया रहता था। लोग उस माओवादी आतंक का जड़ से खात्मा चाहते हैं जिसने उनके बच्चों का भविष्य संकट में डाल दिया था। मोदी ने कोमरम भीम के साहस की भी सराहना की, जिन्होंने हैदराबाद के निजाम के अत्याचारों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और क्षेत्र में किसानों की फसलों को जब्त करने के लिए उनके द्वारा भेजे गए एक अधिकारी को मार डाला था।

उन्होंने कहा कि साथियो, उस दौर में जब निजाम के खिलाफ एक शब्द बोलना भी गुनाह था। उस नौजवान ने सिद्दीकी नाम के निजाम के एक अधिकारी को खुली चुनौती दे दी थी। निजाम ने सिद्दीकी को किसानों की फसलें जब्त करने के लिए भेजा था लेकिन अत्याचार के खिलाफ इस संघर्ष में उस नौजवान ने सिद्दीकी को मौत के घाट उतार दिया। भीम गिरफ्तारी से बच निकलने में भी कामयाब रहे और निजाम की अत्याचारी पुलिस से बचते हुए सैकड़ों किलोमीटर दूर असम जा पहुंचे।

उन्होंने कहा कि कोमरम भीम की आयु बहुत लंबी नहीं रही, वे महज 40 वर्ष ही जीवित रहे लेकिन अपने जीवन-काल में उन्होंने अनगिनत लोगों, विशेषकर आदिवासी समाज के हृदय में अमिट छाप छोड़ी। 15 नवंबर को राष्ट्र भगवान बिरसा मुंडा की जयंती (जनजातीय गौरव दिवस) मनाएगा। भगवान बिरसा मुंडा जी और कोमरम भीम जी की तरह ही हमारे आदिवासी समुदायों में कई और विभूतियां हुई हैं। मेरा आग्रह है कि आप उनके बारे में अवश्य पढ़ें।

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