नयी दिल्ली, 27 अक्तूबर (एजेंसी)
नेताओं, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित विभिन्न लोगों की जासूसी के लिए इस्राइली स्पाईवेयर पेगासस के इस्तेमाल के आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को विशेषज्ञों की 3 सदस्यीय समिति नियुक्त की। अदालत ने कहा कि सरकार हर बार राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई देकर बच नहीं सकती और इसे ‘हौवा’ नहीं बनाया जा सकता, जिसका जिक्र होने मात्र से न्यायालय खुद को मामले से दूर कर ले।
साइबर, डिजिटल फॉरेंसिक, नेटवर्क एवं हार्डवेयर विशेषज्ञों की समिति में नवीन कुमार चौधरी, प्रबारन पी. और अश्विन अनिल गुमस्ते को शामिल किया गया है। शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरवी रवींद्रन समिति के कामकाज की निगरानी करेंगे। पूर्व आईपीएस अधिकारी आलोक जोशी और संदीप ओबेरॉय न्यायमूर्ति रवींद्रन की सहायता करेंगे। इस समिति को व्यापक शक्तियां दी गई हैं। पीठ ने इस मामले में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, पत्रकार एन राम और शशि कुमार सहित अन्य की याचिकाओं को आगे की सुनवाई के लिए 8 सप्ताह बाद सूचीबद्ध किया है।
भारत के चीफ जस्टिस (सीजेआई) एनवी रमण, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया मौजूदा साक्ष्य गौर करने योग्य प्रतीत होते हैं।
पीठ ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देने की केंद्र की पुरजोर दलीलों को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा वह हौवा नहीं हो सकती, जिसका जिक्र होने मात्र से अदालत खुद को मामले से दूर कर ले। पीठ ने कहा, प्रत्येक नागरिक को निजता के उल्लघंन से सुरक्षा प्रदान करना जरूरी है और सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई देने मात्र से न्यायालय मूक दर्शक बना नहीं रह सकता। पीठ ने केंद्र का स्वयं विशेषज्ञ समिति गठित करने का अनुरोध यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि ऐसा करना पक्षपात के खिलाफ स्थापित न्यायिक सिद्धांत के विरुद्ध होगा। अदालत ने कहा कि न्याय न केवल किया जाना चाहिए, बल्कि होते हुए भी दिखना चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘हम यह स्पष्ट करते हैं कि हमारा प्रयास राजनीतिक बयानबाजी में खुद को शामिल किये बगैर संवैधानिक आकांक्षाओं और कानून का शासन बनाए रखने का है।’ पीठ ने कहा कि यह न्यायलाय सदैव ही राजनीति के मकड़जाल में प्रवेश नहीं करने के प्रति सजग रहता है। पीठ ने कहा, ‘सभ्य लोकतांत्रिक समाज के सदस्य उचित निजता की अपेक्षा करते हैं। निजता सिर्फ पत्रकारों या सामाजिक कार्यकर्ताओं की चिंता का विषय नहीं है।’ शीर्ष अदालत ने कहा कि कानून के शासन से शासित एक लोकतांत्रिक देश में, संविधान के तहत कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन करते हुए पर्याप्त वैधानिक सुरक्षा उपायों के अलावा किसी भी तरह से मनमानी तरीके से लोगों की जासूसी की अनुमति नहीं है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह 6 बाध्यकारी परिस्थितियों को देखते हुए समिति की नियुक्ति कर रही है। इनमें यह भी शामिल है कि केंद्र या राज्य सरकारें नागरिकों को अधिकारों से कथित रूप से वंचित करने में पक्ष हैं। एक बाध्यकारी परिस्थिति यह थी कि नागरिकों के निजता और बोलने की आजादी के अधिकार प्रभावित होने के आरोप हैं, जिनकी पड़ताल जरूरी है।
हर नागरिक की निजता की रक्षा जरूरी
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले में दायर याचिकाएं ‘ऑरवेलियन चिंता’ पैदा करती हैं। ‘ऑरवेलियन’ उस अन्यायपूर्ण एवं अधिनायकवादी स्थिति, विचार या सामाजिक स्थिति को कहते हैं, जो एक स्वतंत्र और खुले समाज के कल्याण के लिए विनाशकारी हो। पीठ ने कहा, ‘हम सूचना क्रांति के युग में रहते हैं, जहां लोगों की पूरी जिंदगी क्लाउड या एक डिजिटल फाइल में रखी है। हमें यह समझना होगा कि प्रौद्योगिकी लोगों के जीवनस्तर में सुधार करने के लिए उपयोगी उपकरण है, लेकिन इसका उपयोग किसी व्यक्ति के पवित्र निजी क्षेत्र के हनन के लिए भी किया जा सकता है।’ पीठ ने कहा कि भारत के हर नागरिक की निजता के हनन से रक्षा की जानी चाहिए। यही अपेक्षा हमें अपनी पसंद और स्वतंत्रता का इस्तेमाल करने में सक्षम बनाती है।
प्रेस की स्वतंत्रता लोकतंत्र का महत्वपूर्ण स्तंभ : सुप्रीम कोर्ट ने प्रेस की आजादी को लोकतंत्र का ‘महत्वपूर्ण स्तंभ’ बताते हुए कहा कि पेगासस मामले में अदालत का काम पत्रकारीय सूत्रों की सुरक्षा के महत्व के लिहाज से अहम है। पीठ ने कहा कि प्रेस की आजादी पर इस तरह की अड़चन उसकी सार्वजनिक निगरानी की महत्वपूर्ण भूमिका पर हमला है, जिससे सटीक और प्रामाणिक जानकारी प्राप्त करने की प्रेस की क्षमता को कमजोर करती है।’
समिति में ये विशेषज्ञ शामिल
नवीन कुमार चौधरी : गुजरात के गांधीनगर स्थित राष्ट्रीय फॉरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय में प्रोफेसर (साइबर सुरक्षा और डिजिटल फॉरेंसिक) एवं डीन हैं। चौधरी को शिक्षाविद, साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ के रूप में 2 दशक से अधिक का अनुभव है और साइबर सुरक्षा नीति, नेटवर्क में विशेषज्ञता हासिल है।
प्रबारन पी. : केरल स्थित अमृता विश्व विद्यापीठम, अमृतापुरी में प्रोफेसर (स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग) हैं। उनके पास कंप्यूटर विज्ञान और सुरक्षा क्षेत्र में 2 दशक का अनुभव है। उनकी रुचि के क्षेत्र मालवेयर का पता लगाने, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी और मशीन लर्निंग हैं। प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में उनके कई लेख प्रकाशित हुए हैं।
अश्विन अनिल गुमस्ते : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई में एसोसिएट प्रोफेसर (कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग) हैं। उन्हें 20 अमेरिकी पेटेंट मिले हैं, उनके 150 से अधिक पत्र प्रकाशित हुए हैं और उन्होंने अपने क्षेत्र में 3 पुस्तकें लिखी हैं। उन्हें विक्रम साराभाई अनुसंधान पुरस्कार (2012) और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के लिए शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार (2018) सहित कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं। उन्होंने अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में विजिटिंग साइंटिस्ट का पद भी संभाला है।
कांग्रेस ने कहा-सत्यमेव जयते
नयी दिल्ली (एजेंसी) : कांग्रेस ने कथित पेगासस जासूसी प्रकरण की जांच के लिए 3 सदस्यीय समिति बनाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए ‘सत्यमेव जयते’ कहा। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट किया, ‘कायर फासीवादियों की आखिरी शरण छद्म राष्ट्रवाद है। पेगासस के दुरुपयोग की जांच के लिए विशेषज्ञ समिति गठित करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हैं। मोदी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर ध्यान भटकाने के शर्मनाक प्रयास किए। सत्यमेव जयते।’ पूर्व कानून मंत्री अश्वनी कुमार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि इसने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि निजता के संवैधानिक अधिकार पर समझौता नहीं किया जा सकता। आदेश ने अदालत के इस दावे को मजबूत किया है कि वह नागरिकों के मूलभूत अधिकारों का संरक्षक है।