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सकल घरेलू उत्पाद में अब ‘ज्ञान’ भी शामिल करने की तैयारी

भारत के सभ्यतागत ज्ञान को मापने का प्रयास, जीडीकेपी की महत्वाकांक्षी योजना शुरू
सांकेतिक चित्र।
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आर्थिक प्रदर्शन के एकमात्र मानक के रूप में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की पर्याप्तता पर बढ़ती चिंताओं के बीच, भारत ने अपनी अनौपचारिक ज्ञान अर्थव्यवस्था के प्रमुख स्तंभों का मूल्यांकन करने के लिए 'सकल घरेलू ज्ञान उत्पाद' (जीडीकेपी) को मापने की एक महत्वाकांक्षी योजना शुरू की है।

इस संबंध में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत एक तकनीकी सलाहकार समूह (टीएजी) ने जीडीकेपी ढांचे में शामिल किए जाने वाले ज्ञान मदों के लिए एक व्यापक वर्गीकरण विकसित करने हेतु शोध प्रस्ताव आमंत्रित किए हैं।

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सरकार से जुड़े नेताओं का मानना ​​है कि अगर भारत पारंपरिक ज्ञान और बुद्धिमत्ता को माप सकता है, तो वह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दौड़ में तेजी से आगे निकल सकता है। इस साल भारत 4.5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के साथ जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है।

टीएजी के अध्यक्ष आर. बालासुब्रमण्यम ने ट्रिब्यून से विशेष बातचीत में कहा कि यह प्रयास भारत के सभ्यतागत ज्ञान को मापने का है। उन्होंने कहा, 'प्रश्न यह है कि क्या आप भगवद् गीता या उपनिषदों में निहित ज्ञान, भारत की औषधीय जड़ी-बूटियों, कला और वास्तुकला के ज्ञान का मूल्यांकन कर सकते हैं? औपचारिक अर्थव्यवस्थाओं, जैसे उद्योगों में अनुसंधान एवं विकास और पेटेंट, कॉपीराइट, सॉफ्टवेयर जैसे बौद्धिक संपदा उत्पादों (आईपीपी) में उत्पादित और उपभोग किए जाने वाले ज्ञान को मापना आसान है, जबकि अनौपचारिक ज्ञान अर्थव्यवस्थाओं से प्राप्त ज्ञान को शामिल करना चुनौतीपूर्ण है। भारत की ज्ञान अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से कवर करने के लिए, इन ज्ञान घटकों को रूपरेखा में शामिल करना होगा। इसमें सफलता का अर्थ भारतीय अर्थव्यवस्था का तेजी से बढ़ना हो सकता है।' बालासुब्रमण्यम ने आगे कहा कि आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) और विश्व बैंक द्वारा जीडीकेपी को परिभाषित करने के पिछले प्रयास सफल नहीं हुए।

इस विषय पर सरकार के अवधारणा नोट में कहा गया है कि भारत में ज्ञान परिसंपत्तियों का वर्गीकरण देश की सभ्यतागत गहराई, सांस्कृतिक समृद्धि पर आधारित होना चाहिए। नोट में आगे कहा गया है, 'भारत की ज्ञान अर्थव्यवस्था को पश्चिमी नजरिए से नहीं देखा जा सकता। इसमें आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति और समय-परीक्षित पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों का मिश्रण प्रतिबिंबित होना चाहिए, जो इसके सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने में सह-अस्तित्व में हों।'

टीएजी के लिए दिशानिर्देश में पांच घटकों को मापना है। इनमें स्वदेशी और पारंपरिक ज्ञान, पारंपरिक पारिस्थितिक और औषधीय ज्ञान, आयुर्वेद, योग, स्थानीय जल प्रबंधन पद्धतियां, मौखिक इतिहास, सांस्कृतिक गतिविधियां, शिल्प और पीढ़ियों से चली आ रही कृषि जानकारी शामिल है। निर्देश में कहा गया है, 'हालांकि इन प्रथाओं और प्रणालियों को समझना व उनका मुद्रीकरण करना मुश्किल है, लेकिन ये मौन ज्ञान का प्रतीक हैं और ज्ञान-आधारित उत्पादकता और स्थिरता की समग्र समझ के लिए महत्वपूर्ण हैं।' मापे जाने वाले अन्य घटक हैं- अनुसंधान एवं विकास; आईपीपी, डिजिटल अर्थव्यवस्था और नॉलेज प्रोसेस आउटसोर्सिंग।

सांख्यिकी मंत्रालय के सचिव सौरभ गर्ग ने इस योजना के बारे में ट्रिब्यून से बात करते हुए कहा कि भारत ज्ञान और बुद्धिमत्ता का एक अमूल्य भंडार है। गर्ग ने कहा, 'हम जानते हैं कि ज्ञान हमारे नेशनल आउटपुट और कल्याण में महत्वपूर्ण योगदान देता है। इसी संदर्भ में मंत्रालय ने अर्थव्यवस्था में ज्ञान के योगदान की अवधारणा बनाने और उसे मापने की अद्वितीय पहल की है। यह किसी भी तरह से कोई आसान काम नहीं है।' उन्होंने कहा कि हम इस काम को व्यवस्थित रूप से करेंगे। व्यापक रूप से चर्चा की जाएगी।

 

 

 

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