NACDAOR प्रमुख अशोक भारती ने ‘दलित क्या चाहते हैं' शीर्षक से रिपोर्ट की जारी, कही कई बड़ी बातें
NACDAOR Report: दलित और आदिवासी संगठनों के राष्ट्रीय परिसंघ (NACDAOR) के अध्यक्ष अशोक भारती ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि बिहार में दलित हाशिए पर हैं और बदलाव के लिए अधीर हैं। उन्होंने ‘दलित क्या चाहते हैं' शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी करते हुए बुधवार को यह दावा किया।
भारत के प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई पर एक वकील द्वारा जूता फेंकने की कोशिश किए जाने पर भारती ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश देश के तंत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं और यह हमला वास्तव में तंत्र पर लक्षित था। NACDAOR के अध्यक्ष ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ‘‘प्रार्थना करनी चाहिए'' कि इस घटना का राज्य में आगामी चुनावों में उनके वोट पर असर न पड़े।
बिहार में विधानसभा चुनाव छह और 11 नवंबर को दो चरण में होंगे तथा मतगणना 14 नवंबर को होगी। चुनावों में कुमार के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) एवं कांग्रेस सहित विपक्षी गुट के बीच सीधा मुकाबला होगा।
रिपोर्ट के अनुसार, अनुसूचित जाति (एससी) समूह बिहार की आबादी का 19.65 प्रतिशत हिस्सा हैं, लेकिन ‘‘लगातार असमानताओं'' ने उन्हें राज्य के विकास में उनके उचित हिस्से से वंचित कर दिया है। भारती ने रिपोर्ट जारी करते हुए एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘चाहे शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो या रोजगार, बिहार में दलित पूरी तरह हाशिए पर हैं। दलित यथास्थिति के खिलाफ हैं।''
उन्होंने कहा, ‘‘दलित अधीर हैं और बदलाव की ओर बढ़ रहे हैं। मैं हालांकि, यह नहीं कह सकता कि वे किस तरफ जाएंगे।'' उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि समुदाय मुख्यमंत्री कुमार से दूर जा रहा है। भारती ने प्रधान न्यायाधीश गवई पर सोमवार को हुए हमले का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘नीतीश कुमार और मोदी जी को प्रार्थना करनी चाहिए कि इससे उनके मतों पर असर न पड़े।''
उन्होंने कहा, ‘‘आपने देखा कि प्रधान न्यायाधीश पर जूता फेंका गया और प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की गई। यह जूता (न्यायमूर्ति) बी आर गवई पर नहीं फेंका गया बल्कि तंत्र पर निशाना साधा गया। प्रधान न्यायाधीश तंत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। तंत्र पूरी तरह से निष्क्रिय है, वह खुद को नहीं बचा सकता।''
रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में दलित साक्षरता दर 55.9 प्रतिशत है जो इस समुदाय के राष्ट्रीय औसत 66.1 प्रतिशत से काफी कम है। इसके अनुसार, बिहार में लगभग 62 प्रतिशत दलित अब भी निरक्षर हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि मुसहर समुदाय की स्थिति और भी गंभीर है और उनकी साक्षरता दर 20 प्रतिशत से भी कम है जो भारत में किसी भी जाति समूह में सबसे कम है।
रिपोर्ट में शिक्षा मंत्रालय द्वारा किए जाने वाले वार्षिक सर्वेक्षण ‘अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण' का हवाला देते हुए कहा गया है कि 19.65 प्रतिशत जनसंख्या हिस्सेदारी और 17 प्रतिशत संवैधानिक आरक्षण के बावजूद संकाय सदस्यों और छात्रों में केवल 5.6 प्रतिशत दलित हैं। इसमें कहा गया है कि लगभग 63.4 प्रतिशत दलित गैर-कामगार हैं जिनमें मुख्य रूप से महिलाएं और युवा शामिल हैं।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, दलितों में शिशु मृत्यु दर प्रति 1,000 जीवित शिशुओं पर 55 है जबकि इस मामले में राज्य का औसत 47 और राष्ट्रीय औसत 37 है। रिपोर्ट में कहा गया कि इसी प्रकार, दलित महिलाओं में मातृ मृत्यु दर प्रति 1,000 जीवित शिशुओं के जन्म पर 130 है जबकि इस मामले में राज्य का औसत 118 और राष्ट्रीय औसत 97 है। इसमें कहा गया कि 84 प्रतिशत से अधिक दलित परिवार भूमिहीन हैं और केवल सात प्रतिशत के पास ही खेती योग्य जमीन है।
रिपोर्ट के अनुसार, दलित परिवारों की औसत प्रति व्यक्ति आय 6,480 रुपये है जो राज्य के औसत से लगभग 40 प्रतिशत कम है। रिपोर्ट के अनुसार, 2010 से 2022 के बीच, बिहार में दलितों पर अत्याचार के 85,684 मामले दर्ज किए गए यानी औसतन प्रतिदिन 17 घटनाएं दर्ज की गईं।