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गर्भ में बेटियों का कत्ल, हरियाणा में इस वर्ष अब तक 120 FIR दर्ज

Female feticide: 120 में से 39 केस अदालत में पहुंच चुके हैं, 47 की जांच जारी
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सांकेतिक फाइल फोटो।
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Female feticide:  हरियाणा के कुछ जगहों पर अभी भी गुपचुप तरीके से ‘गर्भ में बेटी की हत्या’ का काला कारोबार चल रहा है। अस्पतालों से लेकर गली-कूचों की दवा दुकानों तक, लिंग परीक्षण और अवैध गर्भपात के फैले जाल को तोड़ने की काेशिश सरकार लगातार कर रही है। पुलिस और स्वास्थ्य विभाग के दस्तावेज बताते हैं कि इस साल जनवरी से अब तक 120 से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं। इनमें डॉक्टर, दलाल और दवा आपूर्तिकर्ता सभी शामिल हैं।

अप्रैल में रोहतक जिले में पुलिस ने एक नर्स को गिरफ्तार किया। उसके पास से एमटीपी किट, अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट और 12 महिलाओं के मेडिकल रिकॉर्ड मिले। इनमें से सात महिलाएं पहले से एक या दो बेटियों की मां थीं। यह मामला सरकारी फाइलों में ‘उच्च प्राथमिकता’ के तौर पर दर्ज हुआ और अब ट्रायल शुरू हो चुका है।

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स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव सुधीर राजपाल ने चंडीगढ़ में राज्य टास्क फोर्स की बैठक में साफ कहा – ‘अब केवल छापेमारी से काम नहीं चलेगा, पूरे नेटवर्क को तोड़ो।’ इसमें उन डॉक्टरों के लाइसेंस रद्द करना भी शामिल है, जो दोषी पाए जाएंगे। 120 में से 39 केस अदालत में पहुंच चुके हैं, 47 की जांच जारी है। बाकी मामलों में सबूत जुटाए जा रहे हैं।

सुधीर राजपाल ने निर्देश दिया कि सभी सीएमओ पुलिस के साथ तालमेल बढ़ाएं और केस को दोषसिद्धि तक पहुंचाएं। ज्यादातर मामले शहरी और अर्द्ध-शहरी इलाकों में पकड़े हैं, जहां निजी अल्ट्रासाउंड सेंटर और क्लीनिक की भरमार है। यहां दलाल गर्भवती महिलाओं को लालच देकर अवैध परीक्षण और गर्भपात की ओर धकेलते हैं।

जागरूकता का नया हथियार

महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों ने बैठक में बताया कि ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान के विज्ञापन अब सिनेमाघरों में चल रहे हैं। साथ ही, एक डिजिटल डैशबोर्ड तैयार हो रहा है, जो राज्यभर में चल रही जागरूकता गतिविधियों की लाइव मॉनिटरिंग करेगा।

चुनौती अब भी बड़ी

2015 के बाद हरियाणा के लिंगानुपात में सुधार हुआ है, लेकिन अधिकारी मानते हैं कि काला कारोबार अब भी खत्म नहीं हुआ। सबसे मुश्किल हिस्सा है - इस गुप्त नेटवर्क के हर खिलाड़ी तक पहुंचना, जो कानून और समाज दोनों के खिलाफ खेल खेल रहा है। सुधीर राजपाल ने कहा कि यह सिर्फ कानून का मामला नहीं, यह समाज की आत्मा से जुड़ा सवाल है।

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