मुगल, दिल्ली सल्तनत को हटाया; महाकुंभ को जोड़ा
इस सप्ताह जारी की गयी नयी पाठ्यपुस्तकें नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति और स्कूल शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा-2023 के अनुरूप तैयार की गयी हैं। संपर्क करने पर एनसीईआरटी के अधिकारियों ने कहा कि ये किताबों का सिर्फ पहला भाग है और दूसरा भाग आगामी महीनों में आने की उम्मीद है। हालांकि, उन्होंने इस बात पर कोई टिप्पणी नहीं की कि हटाए गये हिस्से किताब के दूसरे भाग में बरकरार रखे जाएंगे या नहीं।
एनसीईआरटी ने पहले मुगलों और दिल्ली सल्तनत से जुड़े पाठों को छोटा कर दिया था, जिसमें तुगलक, खिलजी, मामलुक, लोदी जैसे राजवंशों का विस्तृत विवरण और मुगल सम्राटों की उपलब्धियों पर दो-पृष्ठ की तालिका शामिल थी। हालांकि, नयी पाठ्यपुस्तक में अब उनके सभी संदर्भों को हटा दिया है।
तीर्थ स्थलों पर नये अध्याय
सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक ‘समाज का अध्ययन : भारत और उसके आगे’ में प्राचीन भारतीय राजवंशों जैसे मगध, मौर्य, शुंग और सातवाहन पर नये अध्याय हैं, जिनका ध्यान ‘भारतीय लोकाचार’ पर है। पुस्तक में एक और नया संस्करण ‘भूमि कैसे पवित्र बनती है’ नामक अध्याय है, जो इस्लाम, ईसाई, यहूदी, पारसी, हिंदू, बौद्ध और सिख जैसे धर्मों के लिए देश-विदेश में पवित्र माने जाने वाले स्थानों एवं तीर्थ स्थलों पर केंद्रित है। अध्याय में ‘पवित्र भूगोल’ जैसी अवधारणाओं का परिचय दिया गया है, जिसमें 12 ज्योतिर्लिंग, चार धाम यात्रा और शक्ति पीठ जैसे स्थानों का विवरण है। पाठ में जवाहरलाल नेहरू का एक उद्धरण शामिल है, जिन्होंने भारत को तीर्थ स्थलों की भूमि के रूप में वर्णित किया है। इस साल की शुरुआत में प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ मेले का भी पुस्तक में उल्लेख है और बताया गया है कि कैसे लगभग 66 करोड़ लोगों ने इसमें भाग लिया।
पाठ्यपुस्तक में दावा किया गया है कि वर्ण-जाति व्यवस्था ने शुरू में सामाजिक स्थिरता प्रदान की, लेकिन बाद में यह कठोर हो गयी, खासकर ब्रिटिश शासन के तहत, जिससे असमानताएं पैदा हुईं। पुस्तक में संविधान पर भी एक अध्याय है, जिसमें उल्लेख किया गया है कि एक समय था जब लोगों को अपने घरों में राष्ट्रीय ध्वज फहराने की अनुमति नहीं थी।