ड्रोन युद्ध क्षमताओं को मजबूत करने के लिए सैन्य अभ्यास
‘वायु समन्वय’ : ऑपरेशन सिंदूर में मिली सफलता के बाद नयी तैयारी
अम्बाला के निकट नारायणगढ़ फील्ड फायरिंग रेंज में आयोजित पांच दिवसीय अभ्यास ‘वायु समन्वय’ के तहत पश्चिमी कमान और दक्षिण-पश्चिमी कमान की टुकड़ियों ने विभिन्न प्रकार के ड्रोन एवं ड्रोन-रोधी प्रणालियों के साथ आक्रामक और रक्षात्मक युद्धाभ्यास किया। पश्चिमी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल मनोज कुमार कटियार ने कहा, ‘ड्रोन को सेना के हर अंग और सेवा में शामिल कर लिया गया है, जिसमें ऊंचाई वाले इलाकों में रसद पहुंचाना भी शामिल है। ऑपरेशन सिंदूर से ड्रोन संचालन से जुड़े कई सबक सीखे और इन्हें सामरिक परिस्थितियों के हिसाब से लागू और बेहतर बनाया जा रहा है। अब ड्रोन के विकास और निर्माण तथा सैनिकों को ऐसे उपकरणों को चलाने के प्रशिक्षण पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है।’
इस बात की तरफ संकेत करते हुए कि इनमें से कुछ प्रणालियाें का इस्तेमाल ऑपरेशन सिंदूर में किया गया था, उन्होंने कहा कि ड्रोन युद्ध और प्रशिक्षण को मजबूत करने पर काफी जोर दिया जा रहा है। यदि अगली बार ऐसा कोई टकराव हुआ, तो दुश्मन को और भी कड़ी सजा मिलेगी।
इस अभ्यास में विभिन्न यूनिट्स और स्थानीय उद्योगों द्वारा निर्मित सामरिक ड्रोन इस्तेमाल किए गए, जिनकी मारक क्षमता पांच किलोमीटर और पेलोड क्षमता 5 किलोग्राम तक है। लेफ्टिनेंट जनरल कटियार ने बताया कि सेना के पास लंबी दूरी और ज्यादा पेलोड क्षमता वाले उच्च-स्तरीय ड्रोन भी हैं। आने वाले वर्षों में सेना को अपनी ऑपरेशनल और लॉजिस्टिक्स जरूरतों को पूरा करने के लिए हजारों ड्रोन की जरूरत होगी। इन ड्रोनों में इस्तेमाल होने वाला गोला-बारूद भी स्थानीय स्तर पर तैयार किया जा रहा है। सेना ने हाल ही में उत्तर-पश्चिम भारत के कई भागों में आई बाढ़ के दौरान बचाव कार्यों में ड्रोन का भी इस्तेमाल किया। निगरानी के लिए हेलीकॉप्टरों के स्थान पर ड्रोन का इस्तेमाल किया गया और इनके जरिये राहत सामग्री भी पहुंचाई गई। अभ्यास में भाग लेने वाले अधिकारियों ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के अनुभवों के आलोक में अभ्यास के दो मूल उद्देश्य थे- दुश्मन के यूएएस का मुकाबला कैसे किया जाए और अपनी आक्रमण क्षमता को कैसे
बढ़ाया जाए।