नयी दिल्ली, 28 मई (ट्रिन्यू)
कोरोना काल ने केवल पत्रकारिता को ही नहीं, बल्कि हमारी जीवन शैली और जीवन मूल्यों को भी झकझोर कर रख दिया। पत्रकारिता ने कई अनापेक्षित बदलाव देखे। उस पर कई तरफ से प्रहार हुए हैं। पत्रकारों को ज्यादा जोखिमपूर्ण परिस्थितियों में काम करना पड़ रहा है। अखबाराें की प्रसार संख्या और विज्ञापन राजस्व घटा है, जिसका असर पत्रकारों के रोजगार पर भी पड़ा है। यह बात दैनिक ट्रिब्यून के संपादक राजकुमार सिंह ने वेब संवाद के दौरान कही।
वे भारतीय जन संचार संस्थान द्वारा हिंदी पत्रकारिता दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित ‘शुक्रवार संवाद’ में ‘कोरोना काल के बाद की पत्रकारिता’ विषय पर मीडिया छात्रों को संबोधित कर रहे थे। कोरोना काल में जान गंवाने वाले पत्रकारों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि देश में कोई आंकड़ा नहीं कि कितने पत्रकारों की जान गईं। उन्होंने कहा कि पत्रकार भी ‘फ्रंटलाइन योद्धा’ हैं, सरकार को उनकी भी चिंता करनी चाहिए।
वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय ने कहा कि मीडिया को लोगों के सरोकारों का ध्यान रखना होगा, उनके प्रति संवेदनशीलता रखनी होगी। यदि सत्य दिखाना पत्रकारिता का दायित्व है तो ढाढस देना, दिलासा देना, उम्मीद देना भी उसी का उत्तरदायित्व है।
इससे पहले, भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि समाज के अवसाद, चिंताएं कैसे दूर हों, इस पर चिंतन आवश्यक है। विद्यार्थियों के लिए इस समय जमीन पर जाकर काम करना जरूरी है। वे अपने आसपास के लोगों को संबल दें।
अमर उजाला डिजिटल के संपादक जयदीप कर्णिक ने कहा कि तकनीक की दृष्टि से कोरोना ने ‘फास्ट फारवर्ड’ बटन दबा दिया है। यूं तो पहले से ही ‘डिजिटल इज़ फ्यूचर’ जुमला बन चुका था, लेकिन जो तकनीकी बदलाव 5 साल में होना था, वह अब 5 महीने में ही करना होगा। तकनीक के साथ चलना होगा, तभी कोई मीडिया घराने के रूप में स्थापित हो सकेगा। हिंदुस्तान की कार्यकारी संपादक जयंती रंगनाथन ने कहा कि मीडिया को सकारात्मक खबरें देनी होंगी। उसे लोगों को बताना होगा कि पुराने दिन लौट कर आएंगे, लेकिन उसमें थोड़ा वक्त लगेगा। कार्यक्रम का संचालन ‘अपना रेडियो’ और आईटी विभाग की विभागाध्यक्ष प्रोफेसर संगीता प्रणवेंद्र ने किया। डीन (अकादमिक) प्रो. गोविन्द सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित किया।