ट्रेंडिंगमुख्य समाचारदेशविदेशखेलबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाफीचरसंपादकीयआपकी रायटिप्पणी

Malnutrition in Children : कुपोषण के बोझ तले दबा बचपन, संसद में पेश हुए चौंकाने वाले आंकड़े

13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 63 जिलों में आधे से अधिक बच्चे छोटे कद के: संसद को प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण
Advertisement

Malnutrition in Children : संसद में प्रस्तुत कई दस्तावेजों के विश्लेषण से पता चला है कि उत्तर प्रदेश के 34 जिलों सहित 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 63 जिलों ने बताया है कि आंगनवाड़ी केंद्रों में नामांकित 50 प्रतिशत से अधिक बच्चों की लंबाई उनकी उम्र के लिहाज से कम है। बच्चों की लंबाई कम रहने के पीछे कई कारक हो सकते हैं जिनमें दीर्घकालिक या बार-बार होने वाला कुपोषण भी शामिल है।

विश्लेषण से यह भी पता चला है कि 199 जिलों में कम लंबाई का स्तर 30 प्रतिशत से 40 प्रतिशत के बीच है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के जून 2025 के पोषण ट्रैकर पर आधारित आंकड़ों के अनुसार, उम्र के लिहाज से बच्चों की लंबाई कम होने के उच्चतम स्तर वाले कुछ सर्वाधिक प्रभावित जिलों में महाराष्ट्र का नंदुरबार (68.12 प्रतिशत), झारखंड का पश्चिमी सिंहभूम (66.27 प्रतिशत), उत्तर प्रदेश का चित्रकूट (59.48 प्रतिशत), मध्य प्रदेश का शिवपुरी (58.20 प्रतिशत) और असम का बोंगाईगांव (54.76 प्रतिशत) शामिल है।

Advertisement

उत्तर प्रदेश इस सूची में सबसे ऊपर है, जहां 34 जिलों में इस समस्या का स्तर 50 प्रतिशत से अधिक है, इसके बाद मध्य प्रदेश, झारखंड, बिहार और असम का स्थान है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कई सवालों के जवाब में बताया कि आंगनवाड़ी केंद्रों में 0-6 साल की उम्र के 8.19 करोड़ बच्चों में से 35.91 प्रतिशत बच्चे कम लंबाई वाले हैं और 16.5 प्रतिशत कम वजन के हैं। पांच साल से कम उम्र के बच्चों में उम्र के मुकाबले लंबाई कम होने की व्यापकता और भी ज्यादा यानी 37.07 प्रतिशत है। कम वजन वाले बच्चों के मामले में भी स्थिति उतनी ही गंभीर है।

महाराष्ट्र के नंदुरबार में 48.26 प्रतिशत बच्चों का वजन कम दर्ज किया गया, जो प्रतिशित आंकड़े के लिहाज से देश में सबसे अधिक है। इसके बाद मध्य प्रदेश के धार (42 प्रतिशत), खरगोन (36.19 प्रतिशत) और बड़वानी (36.04 प्रतिशत), गुजरात के डांग (37.20 प्रतिशत), डूंगरपुर (35.04 प्रतिशत) और छत्तीसगढ़ के सुकमा (34.76 प्रतिशत) जिले हैं। कम वजन बच्चों में तीव्र कुपोषण का संकेत है। मध्य प्रदेश के धार में सबसे अधिक 17.15 प्रतिशत बच्चे कम वजन के पाए गए, इसके बाद छत्तीसगढ़ के बीजापुर (15.20 प्रतिशत) और नगालैंड के मोन (15.10 प्रतिशत) का स्थान है।

मध्य प्रदेश में कई जिले हैं जहां कम लंबाई की दर 50 प्रतिशत से अधिक है, जिनमें शिवपुरी (58.20 प्रतिशत), खरगोन (55.02 प्रतिशत) और गुना (52.86 प्रतिशत) शामिल हैं। असम में भी कई जिले हैं जहां इसकी दर 50 प्रतिशत से अधिक है, जिनमें कछार (54.11 प्रतिशत), दरंग (51.65 प्रतिशत) और दक्षिण सलमारा-मनकाचर (52.67 प्रतिशत) शामिल हैं। अरुणाचल प्रदेश का तिरप (52.74 प्रतिशत) और ऊपरी सुबनसिरी (52.10 प्रतिशत) भी सबसे अधिक प्रभावित जिलों में शामिल हैं।

कर्नाटक के रायचूर (52.76 प्रतिशत) और बागलकोट (51.61 प्रतिशत), राजस्थान का सलूम्बर (52.95 प्रतिशत) और गुजरात के नर्मदा (50.71 प्रतिशत) में (बच्चों के छोटे कद की) समस्या काफी ज्यादा है। केंद्र शासित प्रदेशों में, पुडुचेरी के माहे में इसकी की दर 57.38 प्रतिशत थी, जो केंद्र शासित प्रदेशों में सबसे अधिक थी। लोकसभा में एक अन्य प्रश्न के उत्तर में महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री सावित्री ठाकुर ने इस बात पर जोर दिया था कि पोषण केवल भोजन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें स्वच्छता, सुरक्षित पेयजल और शिक्षा जैसे कारक भी शामिल हैं।

उन्होंने कहा कि सरकार ‘मिशन सक्षम आंगनवाड़ी' और ‘पोषण 2.0' को क्रियान्वित कर रही है, जो एक व्यापक योजना है जो आंगनवाड़ी सेवाओं, ‘पोषण अभियान' और किशोर पोषण कार्यक्रमों को एकीकृत करती है। यह योजना तीव्र कुपोषण (सीएमएएम) के समुदाय-आधारित प्रबंधन (सीएमएएम) और फोर्टिफाइड चावल के उपयोग और भोजन में बाजरे को शामिल करने पर केंद्रित है।

Advertisement
Tags :
child healthChild stunting statisticsDainik Tribune Hindi NewsDainik Tribune newsHindi NewsKids data analysislatest newsMalnutritionMalnutrition in childrenparliamentUP newsuttar Pradeshदैनिक ट्रिब्यून न्यूजहिंदी समाचार